पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२६

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होगा । वह लफगा किस साहस पर मरे घर पर आया था। आप कहते हैं क्या। मैं तो उसका खून भी पी जाऊँगा। रामनाथ ने उसके बढते हुए क्रोध को शान्त करने की इच्छा से कहा-सुना मधुबन | राजो फिर भी ता स्त्री है। उसे तुम्हारी भलाई का लोभ किसी न दिया होगा। वह वेचारी उसी विचार से नही वावाजी । इसम कुछ और भी रहस्य है। वह चाहे मैं अभी नही समझ सका हूँ ।-कहते-कहते मधुबन सिर नीचा करके गम्भीर चिन्ता में निमग्न हो गया। ___ अन्त मे रामनाथ ने दृढ स्वर कहा-पर तुमको तो आज ही शहर जाना हागा । यह लो रुपय सब वस्तुएं इसी सूची के अनुसार आ जानी चाहिए। मधुबन ने हताश होकर रामनाथ की ओर देखा, फिर वह वृद्ध अविचल था। मधुबन का शहर जाना पड़ा। दूर से तितला सब सुनकर भी जैसे कुछ नही सुनना चाहती थी। उसे अपने ऊपर क्रोध आ रहा था। वह क्यो ऐसी विडम्बना में पड़ गई । उसको लेकर इतनी हलचल | वह लाज में गडी जा रही थी। २८८ प्रसाद वाङ्मय