पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३३

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भी नाम पूछ रह है। वह जैस किसी पुरस्कार पान की प्रत्याशा और लातच से प्रेरित होकर वोल उठी-दासी का नाम किशोरी है। ___महात्मा की दृष्टि म जैसे एक आनाक घूम गया। उसने सिर नीचा कर लिया और बोला-अच्छा विलम्ब हागा जाइए । भगवान् का स्मरण रखिए । श्रीचन्द्र किशारी के साथ उठे । प्रणाम किया और चल । माधुआ का भजन-कोलाहत शान्त हो गया था। निस्तब्धता रजनी क मधुर क्राड म जाग रही थी । निशोथ के नक्षत्र, गगा क मुकुर म अपना प्रतिबिम्ब देख रहे थे । शीत पवन का झाका सवका आलिंगन करता हुआ विरक्त के समान भाग रहा था। महात्मा के हृदय म हलवल थी। वह निष्पाप हृदय ब्रह्मचारी दुश्चिन्ता से मलिन, शिविर छोडकर कम्बल डाले, बहुत दूर गगा की जलधारा के समीप खडा होकर अपने चिरसश्चित पुण्यो को पुकारने लगा। ____ वह अपन विराग को उत्तेजित करता, परन्तु मन को दुवलता प्रलोभन बनकर विराग की प्रतिद्वन्द्विता करन लगती और इसम उसक अतीत की स्मृति भी उसे धोखा द रही थी। जिन-जिन मुखा का वह त्यागन के लिए चिन्ता करता वे ही उसे धक्का दन का उद्योग करत । दूर सामने दीखने वाली कलिन्दजा को गति का अनुकरण करन के लिए वह मन को उत्साह दिलाता परन्तु गम्भीर अद्ध निशीथ क पूण उज्ज्वल नक्षत्र वालकान की स्मृति क सदृश मानस पटल पर चमक उठत थे । अनन्त आकाश म जैस अतीत की घटनाएं रजताक्षरा स लिखी हुई उस दिखाई पडन लगी झेलम के किनार एक बालिका और एक बालक अपन प्रणय के पोध को अनक क्रीडा-कुतूहलो के जल से सोच रहे है । बालिका क हृदय में असीम अभिनापा और बालक के हृदय म अदम्य उत्साह | वालक रजन आठ वर्ष का हा गया और किशारी सात की। एक दिन अकस्मात् रजन को लेकर उसके मातापिता हरद्वार चल पडे । उस समय किशोरी ने उसस पूछा-रजन कब आओगे? उसने कहा-बहुत ही जल्द । तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी गुडियों ले आऊगा। रजन चला गया। जिस महात्मा की कृपा और आशीर्वाद स उसने जन्म लिया था, उसी के चरणो म चढा दिया गया। क्योकि उसकी माता न सन्तान होने के लिए ऐसी हो मनोतो की थी। निष्ठुर माता पिता ने अन्य मन्ताना के जीवित रहन की आशा में अपन ज्यप्ठ पुत्र का महात्मा का शिष्य बना दिया । विना उसकी इच्छा के वह ससार स-जिसे उसने अभी देखा भी नही था अलग कर दिया गया । उसका गुरुद्वार ककाल ५