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इन्द्रदेव ने उसकी चपलता पर खीझ कर कहा-उसक निए-अभी बहुत दर है मिस अनवरी। फिर उसने अपन हाथ का फला का गुच्छा आशीर्वाद-स्वरूप शैला की आर वढा दिया। शैला न कृतज्ञतापूर्वक उस लेकर माथे से लगा लिया और इन्द्रदव के पास ही बैठ गई। रामनाथ ने एक-एक माला सवको पहना दी और कहा-आप लामो स मरी एक और भी प्राथना है। कुछ समय तो लगेगा, किन्तु आप लोग भी ठहरकर मर शिष्य मधुबन और तितली के विवाह म आशीर्वाद दगे तो मुझे अनुगृहीत करेंगे। ___ इन्द्रदव तो चुप रह । उनके मन म इस प्रसग स न जान क्या विरक्ति हुई। अनवरी चुप रहने वाली न थी। उसने हंसकर कहा-वाह | तव ता ब्याह की मिठाई खाकर ही जाऊँगी। तितली और मधुवन अभी वदी के पास बैठ थ, सुखदेव किसी को प्रतीक्षा म इधर-उधर देख रहे थे कि तहसीलदार साहब आते हुए दिखाई पडे । मुखदेव न उठकर उनके कानो म कुछ कहा। तहसीलदार को कुतरी हुई छोटी-छोटी मूंछे कुछ फूल हुए तेल से चुपडे गाल-जैसा कि उतरती हुई अवस्था के मुखी मनुष्या का प्राय दिखाई पडता है, नीचे का मोटा लटकता हुआ आठ, वनावटी हंसी हंसन की चेप्टा म व्यस्त, पट्टेदार वालो पर तेल स भरी पुरानी काली टोपी, कुटिलता स भरी गाल-गाल आखे किसी विक्ट भविष्य की सूचना द रही थी। उन्हाने लम्बा सलाम करत हुए इन्द्रदेव म कहा~म एक जरूरी काम से चला गया था। इसी स इन्द्रदेव को इस विवरण की आवश्यकता न थी । उन्होने पूछा-नील-कोठी से आप हो आये ? वहां का प्रवन्ध सब ठीक है न? हॉ—एक वात आपसे कहना चाहता हूँ। इन्द्रदव उठकर तहसीलदार की बात सुनन लगे। उधर वेदी क पास ब्याह की विधि आरम्भ हुई । शैला भी वहाँ चलो गई थी । मधुबन आहुतियाँ द रहा था और तितली निप्कम्प दीप शिखा-सी उसकी वगल म बैठी हुई थी। सहसा दो स्त्रियां वहाँ आकर खड़ी हो गई। आगे तो राजकुमारी थी, उसके पीछे कौन थी, यह अभी किसी को नहीं मालूम । राजकुमारी की आँख जल रही थी। उसने क्रोध से कहा, बाबाजी, किसी का घर बिगाडना अच्छा नही । मेरे मना करने पर भी आप ब्याह करा रहे हैं । किसी लड़के को फुसलाना आपको शोभा नहीं देता। ३१० प्रसाद वाङ्मय