पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३४२

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१० नील-काठी में अस्पताल खुल गया। बैंक के लिए भी प्रबन्ध हा गया । वही ___गाव की पाठशाला भी आ गई थी। वाट्सन ने चकबन्दी की रिपोर्ट और नक्शा भी तैयार कर दिया और प्रान्तीय मरकार स बुलावा आने पर वही लौट गये । साथ हो-साथ अपने सौजन्य और स्नेह स धामपुर के बहुत से लोगो के हृदयो में अपना स्थान भी बना गये। शैला उनके बनाये हए नियमा पर साधक की तरह अभ्यास करन लगी। अभी भी जमादार क परिवार पर उस उत्सव की स्मृति सजीव थी। किन्तु श्यामदुलारी के मन में एक बात खटक रही थी। उनक दामाद वाबू श्यामलाल उस अवसर पर नही आय । इन्द्रदव न उन्ह लिखा भी था, पर उनको छुट्टी कहा ? पहल ही एक बोट पर गगा-सागर चलने के लिए अपनी मिन-मण्डली का उन्हान निमत्रित किया था । कुल आयोजन उन्ही का था। चन्दा तो सब लोगा का था किन्तु क्सिको ताश खलना है, किस सगीत के लिए बुलाना है, और कौन व्यग विनोद से जुए म हारे हुए लोगा को हँसा सकेगा, कौन अच्छी ठढाई बनाता है, किस वढिया भोजन पकाने की क्रिया मालूम है—यह तो सभी को नहीं मालूम था । श्यामलाल क चल आने से उनकी मित्र-मण्डली गगा-सागर का पुण्य न लूटती । वह आन नही पाये । तहसीलदार और चौबेजी जल उठे थे तितली के ब्याह से । जो जाल उनका था, वह छिन हो गया। शैला के स्थान पर जो पात्री चुनी गई थी, वह भी हाथ से निकल गई । उन्होने श्यामदुलारी के मन म अनेक प्रकार स यह दुर्भावना भर दी कि इन्द्रदव चौपट हा रहे हैं और हम लोग कुछ नही कर सकते। शैला को घर से तो हटा दिया गया, पर वह एक पूरी शक्ति इकट्ठी करके उन्ही की छाती पर जम गई। श्यामदुलारी की खीझ वढ गई। उनक मन में यह धारणा हो रही थी कि इन्द्रदेव चाहते, और भी दो-एक पत्र लिखते, तो श्यामलाल अवश्य आते। वह इन्द्रदेव से उदासीन रहने लगी । घरलू कामो म अनवरी मध्यस्थता करने लगी। ३१४ प्रसाद वाङ्मय