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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३५३

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मलिया, एक डाली में मटर की फलियां, एक कह और कुछ आलू लिए हुए मधुबन के ऐत से जा रही थी। महंगू ने जाते हो कहा-मधुवन बाबू । मलिया को बुलाने के लिए छावनी से तहसीलदार साहव आये थे। वहां उसके न जाने से उपद्रव मचेगा। ___तो उसको मना कौन करता है, जाती क्यो नही ?--कहकर मधुवन ने जाने के लिए पैर बढाया ही था कि तितली ने कहा- वाह, मलिया क्या वहाँ मरने जायेगी! क्यो, जब उसका छावनी के काम करने के लिए, फिर से रख लेने के लिए, बुलावा आ रहा है, तव जाने मे क्या अडचन है ?-रुकते हुए मधुबन ने पूछा । बुलावा आ रहा है, न्योता आ रहा है। सब तो है, पर यह भी जानते हो कि वह वयो वहाँ से काम छोड आयी है ? वहाँ जायगी अपनी इज्जत देने ? न जाने कहाँ का शरावी उनका दामाद आया है । उसने तो गाँव भर को ही अपनी ससुराल समझ रखा है। कोई भलामानस अपनी बहू-बेटी छावनी में भेजेगा क्यो? ___महंगू ने कहा-हाँ बेटी, ठीक कह रही हो। पर हम लोग जमीदार से टक्कर ले सके, इतना तो बल नही । मलिया अब मेरे यहाँ रहेगी ता तहसीलदार मेरे साथ कोई-न-कोई झगडा-झझट खडा करेगा । सुना है कि कुवर साहब तो अब यहां रहते नही । आज-कल औरतो का दरवार है। उसी के हाथ म सब-कुछ है। मधुबन चुप था । तितली ने कहा- तो उसे यही रहने न दो, देखा जायगा । महंगू ने वरदान पाया । वह चला गया। मालिया दूर खड़ी सव सुन रही थी। उसकी आँखो से आँसू निकल रहा था। तितली ने कहा-रोती क्यो है रे, यही रह, कोई डर नही, तुझे क्या कोई खा जायगा ? जा-जा देख, ईंधन को लकडी सुखाने के लिए डाल दी गई गई है, उठा ला। मलिया आंचल से आँसू पोछती हुई चली गई। उसका चचा भी भर गया था। अब उसका रक्षक कोई न था । तितली ने पूछा-अब रुके क्यो खडे हो ? नील-कोठी जाना या न? जाना तो था । जाऊँगा भी। पर यह तो बताओ, तुमन यह क्या झझट माल ली। हम लोग अपने पैर खडे होकर अपनी ही रक्षा कर ले, यही बहुत है। अब तो धाबाजी की छाया भी हम लोगो पर नहीं है । राजो बुरा मानती ही है। मैने शेरकोट जाना छोड दिया। अभी ससार मे हम लोगो को धीरे-धीरे घुसना } तितली: ३२५