पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३५५

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तो भी लंगोट लेते चलने म कोई अरे तो क्या मैं लंगोट घर छोड आया हूँ। चल भी। हंसते हुए मधुवन ने रामजस को एक धक्का दिया, जिसमे यौवन के बल का उत्साह था । रामजस गिरते-गिरते बचा। दोनो छावनी की आर चले। छावनी मे भीड थी। अखाडा बना हुआ था। चारो आर जनसमूह खडा और बैठा था । कुरसी पर वावू श्यामलाल और उसके इप्ट-मित्र बैठे थे । उनका साथी पहलवान लुगी बाँधे अपनी चौडी अती खोले हुए खडा था। अभी तक उससे लडन के लिए कोई भी प्रस्तुत न था। पास के गावो की दो-चार वेश्याएं भी आम के वीर हाथ म लिये, गुलाल का टीका लगाये, वहां बैठी थी-छावनी में वसन्त गाने क लिए आई थी। यही पुराना व्यवहार था । परन्तु इन्द्रदेव होते ता वात दूसरी थी। तहसीलदार ने श्यामलाल बाबू का आतिथ्य करने के लिए, उनस जो कुछ हा सका था, आमोद-प्रमोद का सामान इकट्ठा किया था। सवेरे ही सबकी केसरिया बूटी छनी थी । श्यामलाल देहाती सुख में प्रसन्न दिखाई देते थे। उन्ह इस बात का गर्व था कि उनके साथी पहलवान से लड़ने के लिए अभी तक कोई खडा नही हुआ । उन्होने मूंछ मरोरते हुए कहा-रामसिंह, तुमसे यहाँ कौन लडेगा जो । यही अपने नत्यू से जोर करके दिखा दा ! सब लोग आये हुए हैं। अच्छा सरकार | -कहकर रामसिंह न साथी नत्थू को बुलाया। दानो अपने दाव-पेंच दिखाने लगे। रामजस ने कहा-क्या भइया, यह हम लोगा को उल्लू बनाकर चला जायगा? मधुबन धीरे से हुँकार कर उठा। रामजस उस हुँकार से परिचित था। उसने युवको को सो चपलता से आगे बढकर कहा—सरकार ! हम लोग देहाती व्हरे, पहलवानी क्या जाने । पर नत्थू से लडने को तो मैं तैयार हूँ। ____सब लोग चौंककर रामजस को देखने लगे। दांव-पेच बन्द करके रामसिंह ने भी रामजस को देखा । वह हंस पडा । जाओ, खत मे कुदाल चलाओ लडके |---रामसिंह ने व्यय से कहा । मघवन से अब न रहा गया। उसने कहा-पहलवान साहब, खतो का अन्न खाकर ही तुम कुश्ती लडते हो। पसेरी भर अन्न खाकर कुश्ती नही लडी जाती भाई । सरकार लोगा के साथ माल चावकर यह कसाले का काम किया जाता है। दूसरे पूत से हाथ मिलाना, हाड-हाड-से-हाड लडाना, दिल्लगी नही है । तितली ३२७