पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३५७

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यह सब उपद्रव दख रही थी। श्यामदुलारी एक ओर प्रसन्न हो रही थी, दूसरी ओर सोचती थी-इन्द्रदेव यहाँ क्यो नही है। ___ जब मैना गाने लगी तो वहाँ मधुवन और रामजस दोना ही न थे । सुखदेव चौबे ता न जाने क्यो मधुवन की जीत और उसक बल को देख कर काप गये । उसका भी मन गान-बजान मे न लगा। उन्होंने धीरे से तहसीलदार के कान में कहा-~मधुबन को अगर तुम नही दवाते, ता तुम्हारी तहसीलदारी हो चुकी । देखा न । गभीर भाव स सिर हिलाकर तहसीलदार ने कहा हूँ। तितली ३२६