पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३६६

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मलिया की आँखो मे कृतज्ञता के आंसू भर आय। नील काटो पर पहुँचकर दो-चार आवश्यक वस्तुएं अपने बेग में रखकर शैला वैयार हो गई। मधुवन को आवश्यक काम समझाकर वह झोल की ओर पत्थर पर बैठी हुई, सडक पर माटर आने की प्रतीक्षा करने लगी। मधुबन का भूख लगी थी। उसने जान के लिए पूछा । तितली भी अभी बैठी होगी-यह जानकर शैला का अपनी भूल मालूम हुई । उसने कहा-जाओ, तितली मुझे कोसती होगी। मधुवन चला गया। तितली की वाते सोचते-सोचते उसकी छाटी-सी मुख से भरी गृहस्थी पर विचार करते-करते, शैला के एकान्त मन म नई गुदगुदी होने लगी। वह अपनी बडी-सी नील काठी को व्यर्थ की विडम्बना समझकर, उसम नया प्राण ले आने की मन-ही-मन स्त्री-हृदय के अनुकूल मधुर कल्पना करन लगी। ____ आज उसे अपनी भूल पग-पग पर मालूम हो रही थी। उसन उत्साह स कहा-अब विलम्ब नहीं। ____ दूर से धूल उडाती हुई मोटर आ रही थी। ड्राइवर के पास एक पाण्डेजी बन्दूक लिये बैठे थे । पीछे श्यामदुलारी और माधुरी थी। टीले के नीचे मोटर रुकी। चमडे का छोटा-सा वेग हाथ मे लिये फुरती से शला उतरी । वह जाकर माधुरी से सटकर बैठ गई। माधुरी ने पूछा-और कुछ सामान नहीं है क्या? नही तो। तो फिर चलना चाहिए। शैला ने कुछ सोचकर कहा-आपने तहसीलदार को साथ में नही लिया । बिना उसके वह काम, जो आप करना चाहती हैं, हो सकेगा? क्षण-भर के लिये सन्नाटा रहा । माधुरी कुछ कहना नहीं चाहती थी। श्यामदुलारी ने ही कहा-हाँ, यह बात ता मैं भी भूल गई । उसको रहना चाहिए । तो आप एक चिट लिख दे । मैं यही नील-काठी वे चपरासी के पास छोड आती हूँ। वह जाकर दे देगा । कल तहसीलदार बनारस पहुँचेगा । श्यामदुलारी ने माधुरी को नोट-बुक से पन्ना फाडकर उस पर कुछ लिखकर दे दिया। शैला उसे लेकर ऊपर चली गई। ___श्यामदुलारी न माधुरी को देखकर कहा-हम लोग जितनी बुरी शैला को समझती थी उतनी तो नहीं है, बडी अच्छी लडकी है । __माधुरी चुप थी । वह अब भी शैला को अच्छा स्वीकार करने में हिचकती थी। शैला ऊपर से आ गई। उसके बैठ जाने पर हार्न देतो हुई माटर चल पड़ी। ३३८:प्रसाद वाङ्मय