पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७४

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राजा भी किवाड खोलकर बाहर निकल आई। मधुवन का हाथ पकड़ कर मैना ने कहा-बस करो मधुवन बाबू । राजो ता सन थी । सुखदेव ने सांस ली। उसकी अकड के बन्धन टूट चुक मैना ने कहा- हम लोग यही रात विता लगे। अभी न जाने हाथी पकडा गया कि नहीं। उधर जाना तो प्राण देना है। ____मुखदेव चतुरता स चूकने वाला न था । उसने उखडे हुए शब्दो म अपनी सफाई देते हुए कहा-मैं क्या जानता था कि हाथी स प्राण बचाने जाकर वाघ के मुंह मे चला गया हूँ। ___मैना को हंसी आ गई। पर मधुबन का क्रोध शान्त नही हुआ था। वह राजकुमारी की ओर उस अन्धकार में घूरने लगा था। राजो का चुप रहना उस अपराध मे प्रमाण बन गया था। परन्तु मधुबन उस अधिक खोलने के लिए प्रस्तुत न था। मीना एक वेश्या थी। उसक सामने कुलानता का आडम्बर रखने वाले घर का यह भडाफोड । मधुवन चुप था । राजकुमारी ने कहा- अच्छा, भीतर चलो। जो किया सो अच्छा किया। यह कौन है ? अब मधुवन का जैस थप्पड लगा। मैना का प्राण बचाकर उसने अच्छा ही किया था। पर थी तो वह वेश्या । उतनी रात को उसे उठाकर ले भागना, फिर उसे अपने घर ल आना | गाँवभर में लोग क्या कहेगे । और सब ता जो होगा, देखा जायगा, इस समय राज कुमारी को क्या उत्तर दे । उसका सकोच उसके साहस को चबाने लगा। ____ मधुबन की परिस्थिति मना समझ गई । उसने कहा- मैं यहाँ नाचने आई हूँ। हायी बिगडकर मुझी पर दौडा । यदि मधुवन वाबू वहाँ न आ जात तो मैं मर चुकी थी। अब रात भर मुझे कही पड़े रहने के लिए जगह दीजिए, सवेर ही चली जाऊँगी। राजकुमारी का समझौता करना था। दूसरा अवसर हाता तो वह कभी न ऐसा करती। उसने कहा-अच्छा आओ मैना-उसके साथ भीतर चलत हुए मधुबन का हाथ पकडकर मैना बोली-~सुखदेव को वही पडा न रहने दीजिए। रात है, अभी न जाने हाथी कुचल दे ता बेचारे की जान चली जायगी। मधुबन कुछ न बोला । वह भीतर चला गया। मुखदेव सवेरा होने के पहले ही धीरे-धीरे उठकर बनजरिया की ओर चला। उसका मन विपाक्त हो रहा था। वह राजकुमारी पर क्रोध से भुन रहा था। ३४६ प्रसाद वाङ्मय