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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७५

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मधुवन को कभी चबाना चाहता था। परन्तु मधुबन के थप्पडो को भूलना सहज बात नहीं । वह वल से ता कुछ नही कर सकता था, तब कुछ छल से काम लेने की उसे नूझी। अपनी बदनामी भी बचानी थी। वनजरिया के ऊपर अरुणोदय की लाली अभी नही आई थी। मलिया झाड लगा रही थी। तितली ने जागकर सवेरा किया था। मधुवन की प्रतीक्षा में उसे नीद नही आई थी। वह अपनी सम्पूर्ण चेतना से उत्सुक-सी टहल रही थी। सामने से चौवेजी आते हुए दिखाई पडे। वह खड़ी हो गई। चौबे ने पूछामधुबन वावू अभी तो नहीं आये न ? नही तो। रात को उन्होने अद्भुत साहस किया। हाथी विगड़ा तो इस फुरती स मैना को बचाकर ले भागे कि लोग दग रह गये । दोनो ही का पता नही । लोग खोज रहे हैं । शेरकोट गये होगे। तितली तो अनमनी हो रही थी। चौवे की उखड़ी हुई गोल-मटोल बाते सुनकर वह और भी उद्विग्न हो गई । उसने चौबे से फिर कुछ न पूछा । चौवेजी अधिक कहने की आवश्यकता न देखकर अपनी राह लगे । तितली को इस सवाद के कलक की कालिमा बिखरती जान पडी। वह सोचने लगी-मैना ! कई बार उसका नाम सुन चुकी हूँ। वही न । जिसने कलकत्ते वाले पहलवान को पछाडन पर उनको बौर दिया था । तो...उसको लेकर भागे। बुरा क्या किया । मर जाती तो? अच्छा तो फिर यहाँ नही ले आये ? शेरकोट राजकुमारी के यहाँ ! जो मुझसे उनको छीनने के लिए तैयार ! मुझको फूटी आँखो भी नही देखना चाहती । वही रात विताने का कारण ? ___ वह अपने को न सँभाल सकी। रामनाथ की तेजस्विता का पाठ भूली न थी। उसने निश्चय किया कि आज शेरकोट चलूंगी, वह भी तो मेरा ही घर है, अभी चलूंगी । मलिया से कहा-चल तो मेरे साथ । तितली उसी वेश में मधुवन की प्रतीक्षा कर रही थी जिसमे दीनानाथ के घर गई थी । वहाँ, आँखे जगने से लाल हो रही थी। दोनों शेरकोट की ओर पग बढाती हुई चली। ___ग्लानि और चिन्ता से मधुवन का भी देर तक निद्रा नही आई थी। पिछली रात मे जब वह सोने लगा तो फिर उसकी आँख ही नहीं खुलती थी। सूर्य की किरणो से चौंककर जब झुंझलाते हुए मधुबन ने आखे खोली ता सामने तितली खडी थी। घूमकर देखता है तो मैना भी बैठी मुस्करा रही है । और राजो वह जैसे लज्जा-सकोच से भरी हुई, परिहास-चचल अधरो मे अपनी वाणी को पी तितली: ३४७