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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७७

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जब से श्यामदुलारी शहर चली गई, धामपुर म तहसीलदार का एकाधिपत्य था । धामपुर के कई गांवो मे पाला ने खेती चौपट कर दी थी । किसान व्याकुल हो उठे थे । तहसीलदार की कडाई और भी बढ़ गई थी। जिस दिन रामजस का भाई पथ्य के अभाव स मर गया और उसकी मां भी पुत्रशोक म पागल हो रही थी, उसी दिन जमीदार की कुर्की पहुँची । पाला से जो कुछ वचा था, वह जमीदार के पेट म चला गया । खडी फसल कुर्क हो गई। महंगू भी इस ताक मे बैठा ही था। उसका कुछ रुपया बाकी था । आज-कल करते बहुत दिन बीत गये । रामजस क बैलो पर उसकी डीठ लगी थी। रामजस निर्विकार भाव से जैसे प्रतीक्षा कर रहा था कि किसी तरह सब कुछ लेकर ससार मुझे छोड दे और मैं भी माता के मर जान के वाद इस गांव को छाड दूं। दूसरे ही दिन उसकी मां भी चल वसी । मधुवन न उसे बहुत समझाया कि ऐसा क्यो करते हो, मम साहब को आने दो, कोई-न-कोई प्रबन्ध हो जायगा, परन्तु उसके मन में उस जीवन से तीव्र उपेक्षा हो गई थी । अव वह गांव में रहना नहीं चाहता । मधुबन के यहाँ कितने दिन तक रहेगा । उसे तो कलकत्ता जाने की धुन लगी थी। उस दिन जब बारात म हाथी बिगडा और मैना को लेकर मधुवन भागा तो गाँव-भर म यह चचा हो रही थी कि मधुवन ने बडी वीरता का कार्य किया। परन्तु उसके शत्रु तहसीलदार और चौबेजी ने यह प्रवाद फैलाया कि 'मधुवन बाबा रामनाथ के सुधारक दल का स्तभ है । उसी ने ऐसा कोई काम किया कि हाथी बिगड गया, और यह रग-भग हुआ ! क्योकि वे लोग बारात में नाच-रग क विरोधी थे। ____ महंगू के अलाव पर गाँव भर की आलोचना होती थी । रामजस का बेकारी में दूसरी जगह बैठन को कहाँ थी । महंगू ने खाँसकर कहा-मधुवन बावू को ऐसा नहीं करना चाहता था। भला ब्याह-बारात मे किसी मगल काम मे, ऐमा गडवड करा देना चाहिए । तितली: ३४६