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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३७८

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झूठे है, जो लोग ऐसी बात कहते हैं महतो |-रामजस न उत्तेजित होकर कहा। ___ और यह भी झूठ है कि रात भर मेना को अपने घर ले जाकर रखा । भाई, अभी लड़के हा, तुम भी ता उसी दल के हा न । दह म जब बल उमगता है तव सब लोग ऐसा कर बैठते है। फिर भी लोक-लाज तो कोई चीज है। मधुबन अभी और क्या-क्या करते है, देखना, मरा भी नाम महंगू है। ____तुम बूढे हो गये, पर समझ से तो कोसो दूर भागते हो । मधुवन क ऐसा काई हो भी । देखो तो वह लडको को पढाता है, नौकरी करता है, खेती-वारी सम्भालता है, अपने अकेले दम पर कितने काम करता है। उसने मैना का प्राण बचा दिया ता यह भी पाप किया ? तुम्हारे जैसे लोग उसके साथ न हांगे तो दूसरे कौन होगे। उसी की बात मुनत-सुनते अपना सब कुछ गंवा दिया, अभी उसकी बडाई करन से मन नही भरता। रामजस को कोडा-सा लगा। वह तमककर खडा हा गया । और कहने लगा-चार पैस हो जाने से तुम अपने को बडा समझदार और भलेमानुस समझने लगे हो। अभी उसी का खेत जातते-जोतते गगरी मे अनाज दिखाई देने लगा, उसी को भला-बुरा कहते हो । मैं चौपट हो गया तो अपने दुर्दैव से महँगू! मधुवन ने मेरा क्या बिगाडा। और तुम अपनी देखो।-कहता हुआ रामजस बिगडकर वहाँ से चलता बना । वह तो वारात देखने के लिए ठहर गया था। आज ही उसका जाने का दिन निश्चित था। मधुबन से मिलना भी आवश्यक था । वह वनजरिया को ओर चला । उसके मन मे इस कृतघ्न गांव के लिए घोर घृणा उत्तेजित हो रही थी । वह साचता चला जा रहा था कि किस तरह महंगू का उसकी हेकडी का दण्ड देना चाहिए। कई बात उसके मन म आईं। पर वह निश्चय न कर सका। ___सामने मधुवन को आते देखकर वह जैसे चौक उठा । मधुवन के मुंह पर गहरी चिन्ता की छाया थी। मधुबन ने पूछा-क्या रामजस, कब जा रह हो ? ____ मैं तो आज ही जाने को था, परन्तु अब कल मवेरे जाऊंगा, मधुवन भइया । एक बात तुमसे पूर्वी तो बुरा नही मानागे? दुरा मान कर कोई क्या कर लेता है रामजस । तुम पूछो । भइया, तुमको क्या हो गया जो मैना को लेकर भागे ? गाँव-भर में इसकी वडी बदनामी है । वह तो कहो कि हाथी ही विगडा था नही तो इस पर परदा डालने के लिए कौन-सी बात कही जाती? ३५० :प्रसाद वाङ्मय