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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३८३

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कहे देता हूँ कि सीधे-सीधे चले जाओ, नही तो तुम्हारी मस्ती उतार दूंगा। कहकर रामजस सीधा तनकर खडा हा गया। सुखदेव ने भी क्रोध मे आकर कहादूंगा एक झापड, दाँत झड जायेगे } में तो समझा रहा हूं, वहकता जा रहा है । तो तुमने मुझको भी मधुबन भइया समझ रखा है न । अच्छा तो लेते जाआ बच्चू !-कहकर रामजस ने लाठी घुमाकर हाथ उसके मोढे पर जड दिया । जब तक चौबे सम्हले तब तक उसने दुहरा दिया । चौबेजी वही लेट गये। लडके इधर-उधर भाग चले। गांव भर में हल्ला मचा । लोग इधर-उधर से दौडकर आये । महंगू ने कहा-यह वडा अधर है । ऐसी नवाबी तो नहीं देखी । भला कुर्क हुए खेत को इस तरह तहस-नहस करना चाहिए। पाडेजी ने कहा-चौबेजी को तो पहले उठा ले चलो, यहाँ खडे तुम लोग क्या देख रहे हो। पाडेजी के कहन पर लोगो को मूछित चौबे का ध्यान आया। उन्ह उठाकर जब लोग जा रहे थे तब मधुवन वहाँ आया। उसने सुना लिया कि सुखदेव पिट गया । मधुबन ने क्षण भर मे सब समझ लिया। उसने कहा-रामजस । अव यहा क्या कर रहे हो ? चलो मेरे साथ । उसने कहा-ठहरो दादा, लगे हाथ इस महंगू को भी समझा द । मधुबन ने उसका हाथ पकड कर कहा---अरे महंगू बूढा है। उस बेचार ने क्या किया है ? अधिक उपद्रव न बढाओ, जो किया सो अच्छा किया। अभी मधुबन उसको समझा ही रहा था कि छावनी से दस लट्ठबाज दोडते हुए पहुँच गये । 'मार-मार' को ललकार बढ चली। मधुबन ने देखा कि रामजस तो अब मारा जाता है । उसने हाथ उठाकर कहा--भाइयो, ठहरो, बिना समझे मारपीट करना नही चाहिए। यही पाजी तो सब बदमाशी को जड है। कहकर पीछे से तहसीलदार ने ललकारा । दनादन लाठियां छूट पड़ी। दो-तीन तक तो मधुबन वचाता रहा, पर कब तक ! चोट लगते ही उसे क्रोध आ गया। उसने लपककर एक लाठी छीन ली और रामजस की बगल में आकर खड़ा हो गया। ___इधर दो और उधर दस । जमकर लाठी चलने लगी। मधुवन और रामजस जब घिर जाते तो लाठी टेककर दस-दस हाथ दूर जाकर खडे हो जाते । छ आदमी गिरे और रामजस भी लहू से तर हो गया। गांव वाले बीच में आकर खड़े हो गये। लडाई बन्द हुई । मधुबन रामजस को अपन कधे का सहारा दिये धीरे-धीरे बनरिया की ओर ले चला। तितली: ३५७