पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३९३

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वह मुस्कराने लगी । वेश्या के यहाँ आने में इतने भयभीत । क्यो ? यहा तो कोई नही सुन सकता। माँ और निळू तो आँगन के उस पार सडक वाले कमरे मे हैं । रधिया साई होगी। वह तो सध्या से ही ऊँघने लगती है। इधर तो मैं ही हूँ। फिर इतना डर काहे का ? कुछ चोरी ता नही कर रहे हैं। एक रात मेरे घर रहने से बहू रूठ न जायेगी। मै मधुवन न फिर उसका चुप रहने का सकेत किया । मेना ने देखा कि मधुबन का मुंह विवर्ण और भयभीत है । उसने मधुवन के शरीर से सटकर पूछाबात क्या है ? मधुवन का हाथ अपने कमर में बंधी थैली पर जा पडा । ओह । हत्या का प्रमाण तो उसी के पास है। उसने धीरे से उसे कमर से खाल कर पलंग पर रख दिया। थैली का रंग लाल था। उसे देखते ही देखते मधुबन की आख चढ गई। मैना न दखा कि मधुवन' उन्मत्त-सा हा गया है। उस झिंझोडकर उसने हिला दिया, क्याकि मधुबन का वह रूप देखकर मैना को भी भय लगा !उसने पूछा-क्यो बोलते नही? मधुवन का सहसा चेतना हुई। उसने धीरे से थैली खोलकर उसमे की गिनियों और रुपये पलंग पर रख दिये । मैना को तो चकाचौध-सी लग गई। मधुवन न धीरे-से लैम्प की चिमनी उतार कर उसकी लो से थैली लगा दी। वह भक-भक करके जर उठी । अब तो मना से न रहा गया। उसने मधुबन का हाथ पकडकर कहा-तुम। कुछ न कहोगे तो मैं माँ को बुलाती हूँ। मुझे डर लग रहा है। मैने खून किया है-मधुवन ने अविचल भाव मे कहा। बाप रे । यह क्यो ? मुझे रुपये देने के लिए? मना का श्वास रुकने लगा। उसने फिर संभलकर कहा-मैं तो बिना रुपय की तुम्हारी ही थी। यह भला तुमने क्या किया? जो करना था कर दिया । अब बताओ, तुम मुझे यहाँ छिपा सकती हो कि नही ? मैं कल यहाँ मे जाऊँगा। रात भर में मुये जो कुछ करना है, उस सोच लूगा। बोलो। मधुवन बा ! प्राण देकर भी आपकी सेवा करूंगी, पर आप यह ता बताइए कि ऐसा क्यो? क्यो-मत पूछो। इस समय मुझे अकेले छोड दो। मैं सोना चाहता है। तितसो ३६७