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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३९२

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कार था। उसके कमरे की खिडकी की सधि से आलोक की पहली रेखा निकल कर उस विराट अन्धकार म निष्प्रभ हा जाती थी। मधुवन सिरस के ऊपर चढी हुई मालती की छाया म ठिठक गया। पीछा करने वालो की आहट लेन लगा । किन्तु वहाँ ता कोई नही आया । उसने साहस भरे हृदय से विश्वास किया, यह सब मेरा भ्रम है । अभी कोई नही आया, और न जानता है कि मैं कहाँ हूँ। तो यह मैना का घर है। कोई दूसरा भी ता यहाँ आ सकता है। कौन जाने वह किसी के साथ उस कोठरी म सुख लुटाती हो । वेश्या रुपये की पुजारिन । है तो मेरे पास भी। उसन अपनी थैली पर हाथ रखा। फिर महन्त की आये उसके सामने आ गई। धीरे-धीरे बडी होने लगी। ओह । कितनी बडी । उनसे छिपकर वह बच नही सकता । समूचा अवकाश केवल महन्त की आँख बनकर उसके सामने खडा था। ___मधुबन ने आँख बन्द करके अपना सिर एक बार दोना हाथो स दबाया । उसने कहा-तो भय क्या । फांसी ही न पाऊंगा| फिर इस समय तो, अच्छा देखू कोई है तो नही। वह धीरे-धीरे बिल्ली के-से दबे पांवो से मैना को खिडकी के पास गया । सधि मे से भीतर का सत्र दृश्य दिखाई द रहा था । आँगन मे भीतर खुलने वाला किवाड बन्द था। खिडकी से लगा हुआ मैना का पलँग था। वह लालटेन के उजाल में कोई पुस्तक पढ रही थी। मधुवन को विश्वास न हुआ कि वह अकेली ही है। उसने धीरे मे खिडकी के पल्लो को खोला । मैना ध्यान से पढ रही थी। उसने फिर पल्लो को हटाया । अव मैना ने घूम कर देखा । वह चिल्लाना ही चाहती थी कि मधुबन की अंगुली मुंह पर जा पडी । चुप रहने का सकेत पाकर वह उठ खडी हुई । धीरे से किवाड खोला। उसने चकित होकर मधुवन का उस रात मे आना देखा। वह सन्देह, प्रसन्नता और आश्चर्य से चकित हो रही थी। मधुवन ने भीतर आकर किवाड बन्द कर दिया। मैना सोच रही थी। मधुबन बाबू सबसे छिपकर मुझ वेश्या के यहाँ इस एकान्त रजनी मे अभिसार करने आये हैं । —उस न जाने क्या विरक्ति सी हुई। उसने मधुबन को पलंग पर बैठाते हुए कहा-भला इधर से आने की उसके मुंह पर हाथ रखकर मधुबन ने कहा चुप रहो । पहले यह बताओ कि तुम्हारे यहां इस समय कौन-कौन है। यहां कोई हम लोगो की बात सुनता तो नही है ? ३६६ . प्रसाद वाङ्मय