पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४०७

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वस्तु नही है ? मैंन उसका त्यागपत्र अस्वीकार कर दिया है, परन्तु अब मैं अर्थ सचिव बन गई हूँ। अब वे सीधे मेरे पास सब कुछ भेज देते हैं । मैं कहती हूँ कि पुरुष और स्त्री को ब्याह करना ही चाहिए । एक-दूसरे के सुख-दुख और अभाव आपदाओ को प्रसनता मे बदलने के लिए सदैव प्रयत्न करना चाहिए । इसीलिए तुम दोना को मैं एक म बाँध देना चाहती हूँ। शैला ने इन्द्रदेव की ओर जिज्ञासा भरी दृष्टि से देखा । इन्द्रदेव ने मिसिर को पुकार कर कहा-देखो, तितली नाम की एक स्त्री वाहर है, उसे बुला लाओ। तितली आई । उसने नमस्कार किया । इन्द्र देव ने कुर्सी दिखलाकर कहाबैठो। सहसा उनके मन मे वह बात चमक गई जो उनके और तितली के ब्याह के लिए धामपुर म एक बार अदृष्ट का उपहास बनकर फैल गई थी। फिर प्रकृतिस्थ होकर, तितली के बैठ जाने पर, इन्द्रदेव ने कहा-मुझे तुम्हारी सब बात मालूम हैं। मैं सब तरह की सहायता करूंगा। किन्तु जब मधुबन इस समय कही जाकर छिप गया है, तब सोच-समझ कर कुछ करना होगा। मैं उसका पता लगान का प्रयत्न करूंगा । और रह गया शेरकोट, उसका कागज मैं देख लूंगा तब कहूँगा । बनजरिया का लगान जमा करवा दूंगा। फिर उसका भी प्रवन्ध कर दिया जायगा । तब तक तुम यही रहो। क्या शैला! कल के लिए तुम तितली का निमत्रित न करोगी? तितली न चुपचाप मुन लिया । शैला ने कहा-तितली | कल के लिए, मेरी ओर से निमन्त्रण है, तुमको यही रहना होगा। तितली के मुह पर उस निरानन्द में भी एक स्मित-रेखा झलक उठी। दूसरे दिन वैवाहिक उत्सव के समाप्त हो जाने पर, तितली वहाँ स विना कुछ कहे सुने कही चली गई ! शैला और इन्द्रदेव दाना हो उसको बहुत खोजते रहे। तितली . १५३