पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४१

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लखनऊ, सयुक्तप्रान्त म एक निराला नगर है । बिजली की प्रभा से आलोकित सन्ध्या 'शाम वध' की सम्पूर्ण प्रतिमा है। पण्य में क्रय-विक्रय चल रहा है, नीच और ऊपर स सुन्दरियो का कटाक्ष । चमकीली वस्तुओ का झलमला, फूला क हार का सौरभ और रसिको क वसन म लगे हुए गन्ध से खेलता हुआ मुक्त पवन,यह सब मिलकर एक उत्तेजित करन वाला मादक वायुमण्डल बन रहा है। मगलदेव अपन साथी खिलाडियो के साथ मैच खलने लखनऊ आया था । उसका स्कूल आज विजयी हुआ है । कल वे लाग बनारस लौटेगे। आज सब चौक में अपना विजयाल्लास प्रकट करने के लिए और उपयोगी वस्तु क्रय करने के लिए एकत्र हुए हैं। ___छात्र सभी तरह के होत है । उनके विनाद भी अपने-अपने ढग के परन्तु मगल इनम निराला था । उसका सहज सुन्दर अग ब्रह्मचर्य और यौवन से प्रफुल्ल था । निमल मन का आलोक उसके मुख मण्डल पर तेज बना रहा था । वह अपन एक साथी को ढूढने के निए चना था, परन्तु वीरेन्द्र न उस पीछे से पुकारा । वह लोट पड़ा। वीरेन्द्र-मगल, आज तुमको मेरी एवं बात माननी होगी । मगल-क्या बात है, पहले सुनू भी। वीरेन्द्र-नही, पहल तुम स्वीकार करो। मगल--यह नही हा सकता क्याकि फिर उस न करने स मुझे कष्ट होगा। वीरेन्द्रबहुत बुरी बात है परन्तु मेरी मित्रता २ नाते तुम्हे करना ही होगा। मगल-यही ता ठीक नहीं । वीरेन्द्र-अवश्य ठीक नहो, तो भी तुम्ह मानना होगा। ककाल १३