पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४१८

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गा रहा था। भीड इकट्ठी था । काइ अच्छी-सी ठुमरी का टुकहा, उसक कामल कठ से निकलकर, लागो का उलझाए था। इतन हा में भीड क उसी पार, जिधर मधुवन खडा था, गडबडी मची। किसा मारवाडी युवक का जब कटा। उसन गिरहकट का हाथ नाट क पुलिन्दा क साय पाडा, साथ हा चमड के हण्टर की गांठ उसक सिर पर बैठी। वह अभी तिलमिला ही रहा था कि रामधारी न देखा कि उस युवक की काठी से कुछ मिलता है। अब उसका वालना धम हो गया। उसन 'हाँ हाँ करते हुए उछल कर मारन वाला का पकड हा लिया। फिर भी पाडे न भून को । उसका काई साथी वहाँ न था। उधर रहीम क दल वाले वहाँ उपस्थित थ । फिर क्या, चल गई। रामधारी पूरी तरह से घिर गया, और वह अधेड भी था। तब भी उसकी वीरता दयते ही बनी। मधुबन तो इस अवसर से अपन का कभी वचित नही कर सकता था। वह भी एक कोना पकडकर यह दृश्य दखन लगा । तान-चार मिनट म एक काण्ड हो गया। कई दर्शका क भी सिर फटे और रामधारी कले क छिलक पर फिसलकर गिर चुका था। सहसा मधुवन न रहाम के दल वाल के हाथ स लकडी छीन ली और उधर नटखट रामदीन ने उस लडके के हाथ स नोटा का वडल पहल हो झटक लिया था। मधुबन न जब रहीम क दल का भागन के लिए वाध्य किया, तब तक रामधारी के साथी और उधर स रहीम के दल वाल और भी जुट गय थे। इतने म पुलिस का हल्ला भी पहुचा। अब तक जा युवक चुपचाप बडी त मयता से मधुवन के शरीर और उसके लाठी चलान को देख रहा था, उसके पास आकर बोला-तुम पकडे जाना न चाहत हा तो मेरे साथ आओ । मधुबन समझ गया । युवक के पीछे मधुबन और रामदीन एक दूसरी गली मे घुस गय। उस गली के भीतर भी, कितन माडो स घूमते हुए वे लोग जब एक छाटे स घर के किवाडो को खोलकर भीतर घुसे तो मधुबन ने देखा कि यहाँ दरिद्रता का पूरा साम्राज्य है । एक गगरी म जल और फटे हुए गूदड का विछावन, बस 1 और कुछ नहीं । युवक ने कहा—मै ममझता हूँ कि तुमका नोटा की आवश्यकता नही है, क्याकि उन्ह लेकर जब तुम कही भुनाने जाआगे, तुरन्त वही पकड लिए जाओगे, इसलिए उन्हें ता मरे पास रख छोडा। और लो यह पाँच रुपये । अपने लिए सामान रखकर दो-चार दिन यही कोठरी मे पडे रहो । फिर देखा जायगा। इतना कहकर उसन एक हाथ तो नोटो के लने क लिए बढाया और दूसर ३६४ प्रसाद वाडमय