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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४१९

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से पाच रुपये देने लगा। मधुबन चकित होकर उसका मुंह देखने लगा--कैसे नोट? इतन मे रामदीन ने नोटो का वडल निकालकर सामने रख दिया। मधुवन ने पूछा---अरे तुन इतने नोट कहाँ से पाये ? क्या उससे तूने छीन लिया पाजी । क्या फिर यहाँ चोरी म पकडवायेगा । यह है कलकत्ता । मालूम होता है कि तुम लोग अभी नय आय हा । भाई यहाँ ता छीना-झपटी चल ही रही है । तुम्हे धर्म के नाम पर भूख मरना हो तो चल जाआ गगा-किनार । लाखा पर हाथ साफ करक सवरे नहाने वाले किसी धार्मिक की दृष्टि पड जायगी तो दो-एक पाई तुम्हे दे हो देगा। नही ता हाथ साफ करो, खाओ पियो, मस्त पडे रहो । मधुबन आश्चर्य स उसका मुंह दख रहा था। युवक ने धीरे ही स नाटो के बडल को उठात हुए फिर कहा--आनन्द से यही पडे रहो । देखो, उधर जा काठ का टूटा सन्दूक है, उसे मत छूना | मैं कल फिर आऊंगा। काइ पूछे तो कह देना कि वीरू बाबू न मुझे नौकर रखा है । बस । ____वह युवक फिर और कुछ न कहकर चला गया। मधुवन हक्का-बक्का-सा स्थिर दृष्टि से उस भयानक और गदी कोठरी को दखन लगा। उसका सिर घूम रहा था। वह किस भूलभुलैया मे आ गया। 'यह किस नरक मे जान का द्वार है ? यही वह बार-बार अपने मन स पूछ रहा था। उसन परदश म फिर वही मूर्खतापूर्ण काय क्या किया, जिसके कारण उस घर छोडकर इधर-उधर मुंह छिपाना पड़ रहा है । मरता वह, मुझे क्या जो दूसरे का झगडा माल लेकर यहा भी वही भूल कर बैठा जो धामपुर में एक बार कर चुका था। उसे अपन ऊपर भयानक क्रोध आया। उसके घाव भी ठढे हाकर दुख रहे थ । रामदीन भी सन हो गया था। फिर भी उसका चचल मस्तिष्क थोडी ही देर म काम करने लगा। उसने धीरे से एक रुपया उठा लिया, और उस घर के बाहर निकल गया। मधुवन अपनी उधेडबुन म बैठा हुआ अपने ऊपर झल्ला रहा था । रामदीन बाजार से पूरी-मिठाई लेकर आया । उसने जब मधुबन के सामने खाना खाकर उसका हाथ पकडकर हिलाया तब उसका ध्यान टूटा । भूख लगी थी, कुछ न कहकर वह खाने लगा। दोनो सो गय । रात कव बीती, उन्हे मालूम नही । हारमानियम का मधुर स्वर उनको निद्रा का वाधक हुआ। मधुबन ने आँख खोलकर देखा कि उसी घर के आंगन म छ -सात युवक और बालक खड होकर मधुर स्वर स भीख मांगन तितली • ३८५