पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२१

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वाह चाचा | तुम कहाँ से मेरा दुर्बुद्धि को तरह इस घर को खापडा म छिपे थ । तो खाली मछली हो न कि और भा कुछ। वरून लकारा-क्या रे ननी तरकारा न बना? कहा चला? जब एक भलेमानस कुछ अपना खर्च करके खाने खिलान का प्रबन्ध कर रह हैं तब भी वीरू चाचा | चुल्हे म डाल दूगा तुम्हारा सूखा भात हा कहत हुए रुपया लेकर दौड गया। मधुबन मुस्करा उठा। वह आज पूरी अमारा करना चाहता है। ठाट-बाट से वीरू के दल की ज्योनार उस दिन हुई। भोजन करके सबका एक-एक वीडा सौंफ और लोंग पड़ा हुआ पान मिला। नारियल भी गुडगुडाया जाने लगा। ताश भी निकला । मधुवन को वाता म ही मालूम हुआ कि उस घर में रहने वाले सव ठलुए वेकार हैं । इस दल के सयोजक हैं 'वीरू बान्' । उन्होंने परोपकार-दृष्टि से ही इस दल का सघटन किया है। उनकी आस्तिक बुद्धि वडी विलक्षण है । अपने दल के सामन जब वह व्याख्यान देत हैं तो सदा ही मनुस्मृति का उद्धरण देते हैं। जव अनायास, अथात् बिना किसी पुलिस के चक्कर मे पडे, कोई दल का सदस्य अर्थलाभ कर ले आता है, उसे ईश्वर को धन्यवाद देते हुए व पवित्र धन समयते हैं। उसे ईश्वर की सहायता समयकर दरिद्रो के लिए, अपने दल की आवश्यकता को पूर्ति के लिए व्यय करने मे कोई सकोच नहीं करते । चाहे वह किसी तरह से आया हो । उन्होंने स्कूल की सीमा पर खडे होकर कालेज को दूर से ही नमस्कार कर दिया था। वह तब भी व्याख्यानवाचस्पति थे । लेखक-पुगव थे। वगाल को पत्रिकाआ म दरिद्रा के लिए वरावर लेख लिखा करते थे। मधुबन की उदारता को सदह की दृष्टि से देखते हुए उस दिन सघ वे धन को मितव्ययिता स खर्च करन का उपदेश देते हुए जब अत में कहा कि ईश्वर सबका निरीक्षण करता है, उसके पास एक एक दान का हिसाब रहता है, तब झल्लाते हुए ननी ने कहा अरे भाई, तुमने मनुष्य को अच्छी तरह समय लिया क्या, जो अब ईश्वर के लिए अपनी बुद्धि को लंगडी टांग अडा रहे हो ? हम लोग हैं भूधे, सब तरह के अभावो से पीडित । पहले हम लोगो को आवश्यकता पूरी होने दो। जब ईश्वर हमसे हिसाब मागगे तब हम लोग भी उनसे ममझ लगे। एक दिन मछली मा सान एकादशी के बाद मिती, वह भी तुमसे देखा नही जाता। बीरू ने देखा कि उसके बडप्पन म बट्टा लगता है । उसने सम्हल कर हंसते हुए कहा- अरे तुम चिड गये अच्छा भाई, वही सही। अच्छा बात का प्रमाण यही है कि वह सबको समझ में नहीं आती तो ठीक है। तितली ३७