पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२३

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रुपये भी लिये और मुझे उस समय निकाल बाहर भी किया । मैं पापी था, अछूत था, पर वह चादी के चमकीले टुकडे-~-उनमे पाप कहा । धीरे से उन्हे वह रख आई । और मैं भगा दिया गया। रिक्शा पर बैठे हुए वाब साहब ने कहा-अरे बहुत धोरे-धीरे चलता है । मधुवन अडियल टटटू की तरह रुक गया । उसने कहा--तो बाबू साहब, मैं घोहा नहीं हूँ। आप उतर कर चले जाइए । मारे हटरो के खाल खीच लूंगा। नवाबी करने की इच्छा थी तो रिक्शा क्यो खीचने लगा । चल, तुझे दौडकर चलना होगा। ____ अच्छा उतरो नही तो मधुबन को आगे कुछ करने से रोक कर उस स्त्री ने कहा-बड़ा हठी है । थोड़ी दूर तो हबडा का पुल है । वही तक चल । नहीं इसे सूतापट्टी के मोड तक चलना होगा मैना । अनवरी के दवाखाने तक । ठीक, वहाँ तक विना पहुँचे श्यामलाल उतरने के नहीं। मधुवन के शरीर में विजली-सी दौड गई । मैना । और यह श्यामलाल वही दगल वाले बाबू श्यामलाल । यही कलकत्ता में ठीक तो | उसके क्रोध के कितने कारण एकत्र हो गये थे। अब वह अपने को रोक न सका। उसने रिक्शा छोड दी। वह झटके से पृथ्वी पर आ गिरा, और मैना के साथ बाबू श्यामलाल भी। _____ मैना भी गहरे नशे मे थी, श्यामलाल का तो कहना ही क्या था। दोनों रिक्शा से लुढककर नीचे आ गिरे। मधुबन की पशु प्रवृत्ति उत्तेजित हो उठी थो । उसने एक नात कस कर मारते हुए कहा-पाजी । श्यामलाल गोगा करने लगा। उसकी पंसली चरमरा गई थी। किन्तु मैना चिल्ला उठी। थोडी दूर खडी पुलिस उधर जब दोडकर आने लगी तो मधुबन अपना रिक्शा खीचकर आगे बढा । पुलिस ने उसे दौडकर पकड लिया । मधुबन को विवश होकर, फिर उन्ही दोनो को लादकर पुलिस के साथ जाना ही पडा । दूसरे दिन हवालात मे मैना और मधुवन ने एक-दूसरे को देखा। मैना चिल्ला उठी-मधुवन । ____ मैना --मधुबन ने उत्तर दिया । दोनो चुप थे। पुलिस ने दोनो का नाम नोट किया। श्यामलाल और मैना अनवरी क दवाखाने में पहुंचाई गई । मधुवन पर अभियोग लगाया गया । केवल उसो घटना के आधार पर नही, पुलिस के पास उस भगोडे के लिए भी वारट था, जिसने बिहारीजो के महन्त के यहां डाका डालकर रुपये लिए थे और उनकी हत्या की चेष्टा की थी। पुलिस के मुविधानुसार उपयुक्त न्यायालय म मधुवन की व्यवस्था हुई । उसके ऊपर डाके डानने के दाना अभियोग थे। न्यायालय में जब तितली ३९५