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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२९

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ही-मन सराहना कर रही थी। फिर शैला ने कहा--तितली । मरी एक बात मानोगी ? मैं इन्द्रदेव के आने पर तुमका बुलाऊंगी। मैं चाहती हूँ कि तुम उनसे एक बार कहा कि वे मधुवन के लिए अपील करें। मुझे पहले ही जब लोगा ने यह समाचार नहीं मिलने दिया कि उनका मुकद्दमा चल रहा है, तो अब मैं दूसरो के उपकार का बोझ क्या लूं? मैं I कदापि नही। वहन शैला | अब उसम क्या धरा है ? उनके यदि अपराध न भी हागे, तो चारछ वरस ब्रह्मा के दिन नही । आंच म तपकर सोना और भी शुद्ध हो जायगा । ---कहकर तितली उठने लगी। तो फिर एक वात और मैं कह लू । बैठ जाआ । मैं कहती है कि तुम मेरे साथ आकर यही नील-काठी म काम करो। यही मैं वालिकाओ की पाठशाला भी अलग खुलवा दूगी। तितली बैठी नही, उसन चलते-चलते कहा-नही, मुझे अपना दुख-मुख अकेली भोग लेने दो। मैं द्वार-द्वार पर सहायता के लिए घूम कर निराश हा सुको हूँ । मुझे अपनी निस्सहायता और दरिद्रता का सुख लेन दा । मैं जानती हूँ कि तुम्हारे हृदय म मेरे लिए एक स्यान है । परन्तु मैं नहीं चाहती कि मुझे काई प्यार करे । मुझस घृणा करो बहन | शैला आश्चर्य स देखती रह गई और तितली चली गई। दूसरी ओर स इन्द्रदेव ने प्रवेश किया । शैला न मीठी मुस्कान से उनका स्वागन किया । इसके कई दिन वाद वनजरिया की खपरैल म जब लड़कियां पढ रही थी, तब उसी के पास एक छोटे-से मिट्टी के टोले को काटकर ईंट बन रही थी। मलिया मिट्टी का लादा बनाकर सांचे म भर रही थी और रामजस उसस इंटे निकालता जा रहा था । राजो एक मजूर स वैला के लिए जान्हरो का ढेठा कटवा रही थी। मिरस के पेट म एक झूला पडा था, उसम तोन भाग थे । छाटे-छाट निरीह शिशु उसम पडे हुए धूप खा रहे थ, और तितली अपन बच्चो को गाद म लिए लडकिया को पहाडा रटा रही थी । उसी समय वाट्सन, शैला और इन्द्रदेव वहां आये । वाट्सन ने टाट पर बैठकर पढती हुई लडकिया का देखा। उनका दखते ही तितली उठ बडी हुई। अपने हाथ से बनाये हुए माढ़े लाकर लडकिया ने रख दिय । सब लोगो क बैठन पर इन्द्रदव ने कहा-शैला ! तुमन अपन प्रवन्ध म इस पाठशाला के लिए कोई व्यवस्था नहा की है ? नही, यह सहायता लेना ही नहीं चाहती। क्या? वह ता मैं नहीं कह सकती। तितप्तो ४०५