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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४३३

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३ इन्द्रदेव चले गये । अधिकार खो वैठने का जैसे उन्हे कुछ दुख हो रहा था। सम्पत्ति का अधिकार । जब वह धामपुर के कुछ नही थे। परिवार से विगाड और सम्पत्ति स भी वचित | मां की दृष्टि म वह विगडे हुए लडके रह गये । उन्हाने देखा कि सम्मिलित कुटुम्ब के प्रति उनकी जितनी घृणा थी, वह कृत्रिम थी, रामजस, मलिया, राजो और तितली, उनके साथ ही और भी कई अनाथ, स्वेच्छा से एक नया कुटुम्ब बनाकर सुखी हो रहे हैं। शैला को वाट्सन के साथ कुछ नवीनता का अनुभव होने लगा। इन्द्रदेव के लिए उसके हृदय मे जो कुछ परकीयत्व था, उसका यहाँ कही नाम नहीं। वह मनायोगपूर्वक बैङ्क और अस्पताल तथा पाठशाला को व्यवस्था म लगी। वाट्सन का सहयोग ! कितना रमणीय था। शैला के त्याग म जो नीरसता थी, वह वाट्सन को देखकर अब और भी स्पष्ट होने लगी। वह ससार के आकर्षण मे जैसे विवश होकर खिंच रही थी। वाट्सन का चुम्बकत्व उसे अभिभूत कर रहा था। अज्ञात रूप से वह जैसे एक हरी-भरी घाटी में पहुंचने पर, आख खोलते ही, वसन्त की प्रफुल्लता, सजीवता और मलय-मारुत, काकिल का कलरव, सभी का सजीव नृत्य अपने चारा ओर देखने लगी। खेतो की हरयाली म उसके हृदय की हरियाली मिल जाती। वाट्सन के साथ सायकाल में गगा के तट पर वह घटा सुपचाप विता देती। वाट्सन का हृदय तब भी बांध से घिरी हुई लम्बी-चौडी झील की तरह प्रशान्त और स्निग्ध था। उसम छोटी-छोटी बीचिया का भी कही नाम नही । अद्भुत 1 शैला उसम अपने को भूल जाती। इन्द्रदेव, धोरे-धीरे भूल चले थे। रात की डाक से नन्दरानो का एक पत्र शैला को मिला। उसम लिखा या बहूरानी! तुम दूसरो को सवा करने के लिए इतनी उत्सुक हो, किन्तु अपने घर का भी कुछ ध्यान है ? मैं समझती हूँ कि तुम्हारे देश में स्वतन्त्रता के नाम पर तितली: ४०६