पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४३६

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शैला व मन म ग्लानि हुई। यह सोचन लगी-शृणा! हां, वास्तव में मुझसे घृणा करता है। यह कुलीन और मैं दखि वालिका । तिम पर भी एक हिन्दू से ब्याह कर चुकी हूँ और मरा पिता जेल जीवन बिता रहा है । तव ! यह इतनी ममता क्या दिखाता है ? दया । दया हो तो, किन्तु इस मुझ पर दया करन का क्या अधिकार है? उसने उद्विग्न हाकर वहा- अब उतरना चाहिए। वाट्सन न मल्लाह स नाव को तट से लगा दने की आज्ञा दी। दोनो उतर पडे । दोना ही चुपचाप पथ पर चल रहे थे। कुहरा छैट गया था । म्य को उज्ज्वल किरणे चारो ओर नाच रही थी। वह ग्राम का जन शून्य प्रान्त अपनी प्राकृतिक शोभा म अविचल था-ठीक वाट्सन के हृदय की तरह। घूमते-फिरत वे दाना बनजरिया म जा पहुंचे। वहां उत्साह और कमण्यता थी । सव काम तीव्रगति स चल रहे थे। मत की टूटी हुई मेड पर मिट्टी चढाई जा रही थी । यही पेड राप जा रहे थे । आवां फूंकने के लिए ईंधन इकट्ठा हो गया था। पाठशाला की खपरैल म से लडकियो का कोलाहल सुनाई पडता था । शैला रुको । वाट्सन न कहा-तो मैं चलता हूँ, तुम ठहर कर आना । मुझे बहुत-सा काम निबटाना है। वह चले गये, और शेला चुपचाप जाकर तितली के पास एक मोढे पर बैठ गई । तितली न शीघ्रता से पाठ समाप्त करा कर लडकिया का कुछ लिखने का काम दिया, और शेला का हाथ पकडकर दूसरी ओर चली। अभी वह भट्ठे के पास पहुँची हागी कि उस दूर से आते हुए एक मनुष्य को देखकर रुक जाना पडा । वह कुछ पहचाना-सा मालूम पडता था । शैला भी उसे देखने लगी। शैला ने कहा-अरे यह तो रामदीन है । रामदीन न पास आकर नमस्कार किया। तब जैस सावधान होकर तितली नि पूछा-रामदीन, तू जेल स छूट आया ? । जेल से छूट कर लाग घर लौट आते हैं, इस विश्वास में आशा और सान्त्वना थी। तितली का हृदय भर आया था। रामदीन ने कहा-मैं तो कलकत्ता से आ रहा हूँ। चुनार से तो मै छाड दिया गया था। वहाँ मैं अपने मन से रहता था। रिफार्मेटरी का कुछ काम करता था । खाने को मिलता था। वहीं पड़ा था। मधुबन बाबू से एक दिन भेंट हो गई। वह कलकत्ता जा रहे थे। उन्ही के संग चला गया था । ४१२ प्रसाद वाङ्मय