पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४३७

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तितली की आंखो में जल नही आया, और न उसको वाणी कांपने लगी। उसने पूछा--तो क्या तू भी उनके साथ ही रहा ? हो, मैं वहाँ रिक्शा खोचता था। फिर मधुवन बाबू के जेल जाने पर भी कुछ दिन रहा । पर वीरू से मेरी पटी नही। वह वडा ढोगी और पाजी था। वह वडा मतलवी भी था । जब तक हम लोग उसको कमा कर कुछ देते थे, वह दादा की तरह मानता था। पर जव मधुवन वावू न रहे तो वह मुझसे टेढासीधा बर्ताव करने लगा । मैं भी छोड कर चला आया। तितली को अभी सन्तोप नहीं हुआ था। उसने पूछा-क्यो रे रामदीन । मुना है तुम लोगो ने वहाँ पर भी डाका और चोरी का व्यवसाय आरम्भ किया था। क्या यह सच है ? __रिक्शा खीचते-खीचते हम लोगो की नस ढीली हो गई। कहाँ का डाका और कहाँ की चोरी । अपना-अपना भाग्य है। राह चलते भी कलक लगता है। नही तो मधुवन बाबू ने वहाँ किया ही क्या । यहाँ जो कुछ हुआ हो, उसे ता मैं नही जानता । वहाँ पर तो हम लोग मेहनत-मजूरी करके पेट भरते थे। तितली ने गर्व से शैला की ओर देखा। शैला ने पूछा- अब क्या करेगा रामदीन? अव, यही गांव मे रहूंगा । कही नौकरी करूंगा। क्या मेरे यहां रहेगा ?-शैला ने पूछा। नही मेम साहव ! बड लोगो के यहां रहने में जो सुख मिलता है, उसे मैं भोग चुका। अरे दाना रम के लिए दीदी ने पूछा है कि...कहती हुई मलिया पीछे से आकर सहसा चुप हो गई। उसने रामदीन को देखा। तितली ने स्थिर भाव से कहा-कहती क्यो नही ? बोल न, क्यो लजाती है । लिवा जा, पहले अपने रामदीन को कुछ खिला । जाओ बहन ! कहकर वह घूम पडी।। रामदीन !-चनजरिया में बहुत-सा काम है। जो काम तुमसे हा सके करो। चना-चबेना याकर पडे रहो।-तितली ने कहा। शैला ने देखा, वह कही भी टिकने नही पाती है। कुछ लोगो को तो उसने पराया बना रखा है । और कुछ लोग उसे हो परकीया समझते हैं । वह मर्माहत होकर जाने के लिए धूम पड़ी। तितली ने कहा-बैठो बहन ! जल्दी क्या है ? तितली, तुमने भी मुझसे स्नेह का सम्बन्ध ढीला कर दिया है ! मेरा हृदय तितली: ४१३