पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४२

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पशुत्व की, विरोध की, प्रधानता हो जाती है। परिस्थितिया ने माधुरी को विरोध करने के लिए उकसाया था। आज की परिस्थिति कुछ दूसरी यो । श्यामलाल और अनवरी का चरित्र किसी से छिपा नही था । वह सब जान-बूझ कर भी नही आये । तव ! माधुरी के लिए ससार में कोई प्राणी स्नेह-पान न रह जायगा । श्यामदुलारी तो जाती हो हैं। प्रेम-मित्रता की भूखी मानवता । बार-बार अपन को ठगा कर भो वह उसी के लिए झगडती है। झगडती हैं, इसलिए प्रेम करती है। वह हृदय को मधुर बनाने के लिए बाध्य हुई। उसने अपने मुंह पर महज मुस्कान लाते हुए डिब्बे को खोला। उसने मोतियो का हार, हीरो की चूड़ियां शैला को पहना दी; और सब गहन उसी म पहे रहे । शैला न धीरे से उन्हें पहनान के लिए माधरी से कहा। माधुरी न भी धीरे से उसकी कपोल चूम कर कहा-भाभी । शेला ने उसे गले से लगा लिया। फिर उसने धीरे से श्यामदुलारी के पैरो पर सिर रख दिया। श्यामदुलारी ने उसको पीठ पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। और, इन्द्रदेव इस नाटक को विस्मय-विमुग्ध होकर देख रहे थे। उन्हे जैसे चैतन्य हुआ। उन्होने माँ के पैरो पर गिरकर क्षमा याचना की। श्यामदुलारी की आंखो में जल भर आया। ४१८ : प्रसार वाङ्मय