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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४१

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शैला ने अवाक् होकर वाट्सन को देखा। उसका गला भर आया था। उपकार और इतना त्यागपूर्ण स्नेह । वाट्सन मनुष्य है ? ____हां, वह मनुष्य अपनी मानवता में सम्पूर्ण और प्रसन्न खडा मुस्कुरा रहा या। शैला न कृतज्ञता स उसका हाथ पकड़ लिया। वाट्सन न फिर कहामोटर खडी है । जाओ, अपनी मरती हुई सास का आशीर्वाद ले लो । जव तुम नौट आओगी, तव में यहां से जाऊंगा। तब तक मैं यहाँ सब काम इन्ह समझा दूंगा। मिस्टर स्मिथ उसे सरलता से कर लेंगे। चलो कुछ खा-पीकर तुरन्त चली जाओ। यता तथा बुढाम के लिए व्यक्तिगत की आवश्यक उसी दिन सन्ध्या को इन्द्रदेव के साथ शैला, श्यामदुलारी के पलग के पास खडी थी। उसके मस्तक पर कुकुम का टीका था। वह नववधू की तरह सलज्ज और आशीर्वाद से लदी थी। श्यामदुलारी का जीवन अधिकार और सम्पत्ति के पैरो से चलता आता था । वह एक विडम्बना था या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। वह मन-हीमन सोच रही थी-- जिस माता-पिता के पास स्नेह नहीं होता, वही पुत्र के लिए धन का प्रलोभन आवश्यक समन्नते हैं। किन्तु यह भीपण आर्थिक युग है । जव तक ससार मे कोई ऐसी निश्चित व्यवस्था नही होती कि प्रत्येक व्यक्ति वीमारी में पथ्य और सहायता तथा वुढामै मे पैट के लिए भोजन पाता रहेगा, तब तक माता-पिता को भी पुन के विरुद्ध अपने लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति की रक्षा करनी होगी। श्यामदुलारी की इस यात्रा में धन की आवश्यकता नही रही । अधिकार के माथ उसे वडप्पन से दान करने की भी श्लाघा होती है। तब आज उनके मन मे त्याग था। ___वृद्धा श्यामदुलारी ने अपने कंपते हाथा से एक कागज शैला को देते हुए कहा-बहू, मेरा लडका बडा अभिमानी है । वह मुझे सब कुछ देकर अव मुझसे कुछ लेना नही चाहता । किन्तु मैं तो तुमको देकर ही जाऊंगी। उसे तुमको लेना ही पडेगा । यही मेरा आशीर्वाद है, लो। शैला ने बिना इन्द्रदेव की ओर देखे उस कागज को ले लिया। अव श्यामदुलारी न माधुरी की ओर देखा। उसने एक सुन्दर डिब्बा सामने लाकर रख दिया। श्यामदुलारी ने फिर तनिक-सी कडी दृष्टि से माधुरी को देखकर कहा-अब इसे मेरे सामने पहना भी दे माधुरी । यह तेरी भाभी है। मानव-हृदय की मौलिक भावना है स्नेह । कभी-कभी स्वार्थ की ठोकर से तितली: ४१७