पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४८

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सुनगे ! अमीरा के यहाँ ता यह मब हाता ही रहता है। हम लाग मन्दिर क सवक है । चलने दो। चलने दे, ठीक ता है । पर कुछ नियम ससार म है अवश्य । उनका ताडकर चलन का क्या फल हाता है, यह आपन अभी नहीं देखा क्या? देखिए, हम लोगा ने अधिकार रहन पर धामपुर म कैसा अंधेर मचाया था। बव किमी तरह राटी के टुकड़ा पर जी रहे है । वहां वह इन्द्रदेव की सरलता और कहां इमको पिशाचलोला । आपन देखा नही मुशोजी, यह लड़की, देहातो वालिका, तितली जिसको गृहस्थी हम लागा न सत्यानाश कर देन का सकल्प कर लिया था, आज कितन सुख से और मुख भी नही, गौरव से-जी रही है। उसकी गोद में एक सुन्दर बच्चा है, और गाँव भर की स्त्रिया म उसका सम्मान है । मधुवन और भी कान लगाकर सुनन लगा । बच्चा । जरे वह न जान किसका है। उसको टाम-शाम स काई वालता नही । पहले का समय हाता तो कभी गांव के बाहर कर दी गई होती, और तुम आज उसकी बडी प्रशसा कर रह हो । उसी के पति मधुवन ने तो तुम्हारी यह दुर्दशा की थी । बुरा हा चाडाल मधुवन का ! उसन भाई तुम्हारा बायर्या हाथ ही झूठा कर दिया । यह तो कहो, किसी तरह काम चला लेते हो। हाँ जी, अपने लोगा को क्या। तो चलो, हम लोग भी वही बैठकर गाना सुने । यहाँ क्या कर रहे है। तहसीलदार ने चौबे का हाथ पकडकर उठाया। दोना बडे डेरे की ओर चले। मधुबन अन्धकार म हट गया। उसका मन उद्विग्न था । वह किसी तरह उसको शान्त कर रहा था। मना की स्वर-लहरी वायु-मण्डल में गूंज रही थी। किन्तु मधुबन के मन म तितली और उसके लडके के विषय मे विकट द्वन्द्व चलन लगा था। वह पागल की तरह लडखडाता हुआ ननीगोपाल के पास पहुंचा। कहा-ननी वावू ! मुझे छुट्टी दीजिए । मैं अब जाता हूं। क्या मधुबन । क्या तुमको यहाँ कोई कष्ट है ? नही, अब मैं यहाँ नही रह सकता। तो भी रात को कहाँ जाओगे ? कल सवरे जहाँ जाना हो, वहाँ के लिए टिकट दिला दूंगा! -ननी न पुचकारते हुए कहा। मधुबन ने रात किसी तरह काट लेना ही मन में स्थिर किया । वह चुपचाप लेट रहा। ४२४: प्रसाद वाङ्मय