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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४४९

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मल का कालाहल घोरे-धोरे शान्त हा गया था। रात गम्भीर हो चली थी। मधुवन को आखा में नाद नही यो । प्रतिशाध लेन के लिए उसका पशु सांकल तुडा रहा था, और वह बार-बार उसे शान्त करना चाहता था । भयानक द्वन्द्व चल रहा था । सहसा अब उसे झपकी आने लगी थी, एक हल्ला-सा मचाहाथी ! हाथो ।। रात को अंधियारी म चारा ओर हलचल मच गई। साटे-बर्दार दौडे । पुलिस का दल कमर बांधन लगा । लोग घवडाकर इधर-उधर भागने लगे। ___ मधुवन चौंककर उठ बैठा । उसके मस्तक में एक पुरानी घटना दौडधूप मचान लगी-मैना भी उसम थी और हाथी भी विगडा था, और तव मधुवन ने उसकी रक्षा की थी वही स उसके जीवन मे परिवर्तन का आरम्भ हुआ था। तो बाज क्या होगा ? ऊँह 1 जा होना हो वह होकर रह । मधुबन को ही क्या न हाथी कुचल दे । सारा झगडा मिट जाय, सारी मनोवेदना की इतिश्री हो जाय। वह अविचल बैठा रहा। घटा में कालाहल शान्त हुआ । काई कहता या, दीसा मनुप्य कुवल गये । काई कहता, नही कुल दस हो तो । इस पर वाद-विवाद चलने लगा। किन्तु मधुवन स्थिर था। उसन सोचा, जिसकी मृत्यु आई उसे ससार स छुटटी मिली । चलो उतन तो जीवन-दड स मुक्त हो गये। सवेरे जब वह जान क लिए प्रस्तुत था, ननीगोपाल स एक ग्राहक कहन लगा -भाई, मैं ता इस मले स भागना चाहता हूँ । यहा पशु और मनुष्य में भद नहो । सब एक जगह बुरी तरह एकत्र किये गय हैं । कव किसकी बारी आवेगी, कोन कह सकता है । सुना है तुमन महन्त का समाचार ? उनको वेश्या, पुजारी और तहसीलदार नाम का एक कर्मचारी ता हाथी से कुचल कर मर गय । महन्त + सिर म चाट आइ है। उसके भी बचने के लक्षण नहीं हैं । उसी के हाथी विगहे, तीना-के-तीनो पागल हो गये । कुछ लोग तो कहते हैं, जो राजा इन हाथियो को लेना चाहता था उसी ने कुछ इन्हे खिलवा दिया। ननी ने कहा-मरें भी य पापी । हाँ, तो तुमका तीन दर्जन चाहिए ? बाँध दो जो। ___ नौकर साबुन वाँधन लगे । मधुवन स्तब्ध खडा था। ननो न उससे पूछाता तुम जाना ही चाहते हो ? हाँ। कुछ चाहिए? तितली ४२५