पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४५५

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वे लोग बातें करते हुए दूर निकल गये थे। वृक्ष के नीचे बैठी हुई मलिन मूर्ति हिल उठी। वनजरिया के पास पहुँचते-पहुंचते रात हो गई। मोहन ने कहा-चाचा । क्या वह भूत था ? तुमन मुझे देख लेने क्यो नही दिया इसी से लोग डर जाते पागल । डर की कौन वात है ? तेरा बाप तो डरना जानता ही न था। हाँ, मैं भी डरता नही है, पर तुमन देखने क्यो नही दिया। मोहन के मन में एक तरह का कुतूहल-मिश्रित भय उत्पन्न हो गया था। वह सुन चुका था कि एकान्त में वृक्षो के पास भूत-प्रेत रहते हैं तब भी वह अपने स्वाभाविक साहस को एकत्र कर रहा था। तितली ने डांटकर पूछा-क्या, तू इतनी देर तक कहाँ घूमता रहा ? एट्टी है तो क्या घर पर पढने को नही है उसन मा को गाद म मुंह छिपाकर कहा-मां, मैं आज अपनी पुरानी डीह देखने चला गया था। शेरकोट । दीपक के धुंधले प्रकाश मे तितली ने उदासी स रामजस की आर देखते हुए कहा-रामजस । इस बच्चे के मन म तुम क्यो असन्तोप उत्पन्न कर रहे हो ? शेरकोट को भूल जाने से क्या उनकी कुछ हानि होगी? ___ भाभी, शेरकोट मोहन का है। तुमको उसे भी लौटा लेना पडेगा, जैसे हो वैसे । मुझे उसके लिए मरना पडे, तो भी मैं प्रस्तुत हूँ। कल मैं स्मिथ साहब के पास जाऊँगा । न हागा तो लगान पर हो उसको मांग लूंगा। मधुबन भइया लौटकर आवगे तो क्या कहेगे। उसको हटान के लिए तितली ने कहा-अच्छा, जाओ। तुम लोग खा-पी लो। कल देखा जायगा। तितली एकात मे बैठकर आज रोने लगी! मधुबन आवेगे? यह कैसी दुराया उसके मन में आज भीषण रूप से जाग उठो । पुरुपोचित्त साहस से उसने इन चौदह वरसो में ससार का सामना किया था। किसी से न झुकने की टेक, अविचल कर्तव्य-निष्ठा और अपने बल पर खड़े होकर इतनी सारी गृहस्थी उसने बना ली । पर क्या मधुबन लौट आवगे आकर उसके सयम और उसकी साधना का पुरस्कार देगे? एक स्नहपूर्ण मिलन उसके फूटे भाग्य म है ? निष्ठुर विधाता। बचपन अकाल भी गोद में | शैशव बिना दुलारना बीता ! यौवन के आरम्भ म अपने बाल-सहवर 'मधुवा' का थोडा-सा प्रणय तितली • ४३१