पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४७३

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माधि विग्रहिक ने विनम्र होकर कहा-"जय हो देव । वह तारण पर आज्ञा की अपेक्षा कर रहा है।' "वुलाओ उसे ।" "साधि विग्रहिक न महादण्डनायक पुष्यमित्र से कहा- ता महादण्डनायक उसको यहा उपस्थित करे।' महादण्डनायक पुष्यमित्र अपन मच में उठकर सीडिया पर आय । उनक सकेत से मालव अश्वारोहिया के दल का नायक घोडा बढा कर सामन आया । उसने अपना खड्ग ऊंचा करके अभिवादन किया। "नायक ! तुम द्वितीय तोरण पर जाकर कलिंग राजदूत का शीघ्र लिवा लाना । ' अश्वारोही नायक तोरण की ओर वग से बढा । पुष्यमित्र अभी खडा था । कुछ ही क्षणो में सामन के विशाल तारण म दा अश्वारोही प्रवेश करत दिखाई पडे । अश्वारोहिया के समीप उतरकर वे सापान को ओर अग्रसर हुए। दूत न मोपान के ऊपर खड महादण्डनायक वो नमस्कार किया । पुप्यमिन ने कलिंग-राजदूत को अपने साथ आन का सकेत किया । साम्राज्य सिंहासन क समीप पहुंचकर राजदूत न सम्राट् की वन्दना प्रणत हा कर की । उसक दोना और पुष्यमिन और नायक खडे थे । राजदूत न सकत पाकर कहा--"महामधवान त्रिकलिंगाधिपति चक्रवर्ती खारवेल 'अभी वह इतना ही कह पाया था कि समीप क मचा से प्रतिवाद का स्वर-सा उठा । सम्राट ने तीव्र दृष्टिपात किया। प्रतिकूल शब्द चुप हुए । सम्राट् न ही कहा–' हाँ, ता खारवेल न क्या कहा "स्वर्ण की जिनमूर्ति, जो कलिंग की पूज्य प्रतिमा है, जिस स्वर्गीय सम्राट अशाक ल आये थे, उसके लिए मन्दिर का निर्माण हो चुका है। प्रतिमा को दन की कृपा अव होनी चाहिए सम्राट् ।"-दूत ने बिना विशेष शिष्टाचार दिखलाय कह डाला । वह विनीत था, किन्तु मगध राज-सभा को देखकर उधक मन म क्षोभ-सा उत्पन्न हा गया था , कुछ-कुछ टोके जाने क कारण राप भी। "दूत | तुम्हारा चक्रवर्ती खारवेल इस समय कहाँ है ? "मम्राट् । दक्षिणापथ विजय कर लेने के बाद चक्रवर्ती उत्तरा मामान्त र विजय-स्कधावार म स्थित हैं।" सम्राट् की भव कुछ तनी, नधुन फडर और तनिए संभल कर बैठ गये। बाल-'ता यह पारवेल को प्राथना है या और कुछ " इरावती : १५३