पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४८१

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अग्निमित्र कुछ और पूछना चाहता था, परन्तु पुजारी ने कुछ स्वर्णमुद्राओ की एक थैली उसे दो और ठहर कर कहा-"अब कुछ मत पूछो। समय आन पर तुम्हे इसी ताम्रपत्र मे सव मालूम हो जायगा । हाँ मेरा दाह कर्म इसी स्त्री में करा देना।' वह चुप हो गया। अग्निमिन बाहर आया। उसने देखाकालिन्दी पत्थर क खम्भे स टिकी चुपचाप खडी है । वह विश्वस्त-सी जान पड़ती थी। उसने चौककर अग्निमित्र स प्रश्न किया-"बताया उसने ? "हां, परन्तु नही के वरावर । किन्तु यह तो बताओ वह मर रहा है । जलान के लिए लकडी यहाँ से कितनी दूर पर मिलेगी। 'उसको चिन्ता मत कीजिए। उधर पीछे वहुत-सी सूखी लकडी वह इक्ट्ठी कर गया है । कृपण था न | ता मैं उस एक बार देख आऊँ ? –कह कर वह भीतर चली गई और अग्निमित्र उधर जाकर देखता है गगातट पर ही चिता की तरह चुनी हुई लकडिया का ढेर पडा है। वह निश्चित आकर शिवालय पर बैठ गया। . कुछ क्षण वीत हागे, कालिन्दी ने बाहर आकर कहा-'पुजारी का शरीरान्त हो गया। -अग्निमित ने कालिन्दी क साथ यथाविधि उसका शव सस्कार किया । समीप ही वह नुपचाप बैठा रहा, जब तक चिता जल न गई। फिर स्नान करक जब वह गगा स ऊपर आया, तब देखा कि मूर्य अस्ताचल को जा ही रहे हैं। अग्निमिन न कालिन्दो के हाथ म स्वण-मुद्रा की थैली देते हुए कहा-'यह ला, इनमें से आवश्यकतानुसार व्यय करना। एक ब्राह्मण का यहाँ और रख लेना । मैं फिर आऊँगा। तुम उद्विग्न होकर यह स्थान मत छोड देना। __ स्वर्ण से बढकर ससार में दूसरा कौन-सा धैर्य देन वाना है । कालिन्दी सतुष्ट थी। अग्निमित्र दवता को प्रणाम कर चला गया। इरावती ४६१