पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५०५

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"राजगह क समीप खारवेल आ गया है और गगा के किनारे शोण के उस पार कान्यकुब्ज से प्रत्यावर्तन करके आने वाली सेना का अग्र भाग पहुँच गया "राहिताश्व जान वाल अश्वारोही कहा है।' "शाण के इस तट पर, नावो की प्रतीक्षा है सामग्री क लिए । कालिन्दी कुछ चिन्तित होकर बोली-"मैं जाती हूँ, अग्निमित्र को शिविका पर अश्वारोही-सना के शिविर मे ले जाओ। कहना कि इन्हे मूच्छित पाकर हम लाग उठा लाय हैं । फिर वही से चल दना और मुझसे भेट करना ।