पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५१३

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"हाँ आर्य !" कुछ ही क्षणा में सेनापति को आज्ञाएं पालन की गई। एक उल्काध अश्व से उतरकर आगे चला। अग्नि उस पर बैठकर पिता के साथ-साथ व करते-करते धीरे-धीरे शिविर की ओर अग्रसर हुआ। इरावती . ३६५