पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५३३

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क सहारे मणिमाला, कालिन्दी और इरावती बैठी यो। एक ब्रह्मचारी भी निलिप्तजैसा बैठा नोचे पी अमराई का अधिकार देय रहा था। सामने वीणा और मृदग के आगे गायक-दल । संगीत का समारोह था। पुष्प पापा मगरु और कस्तूरी को वत्तियां चल रही थी। बडे-बह दीपाधारा म गध तेल को दीपिकाएं अपने यप्रक ने खोल म जल रही थी। आमोद स यह पक्ष भर उठा था । पर्दे डाल दिये गये थे। वीणा गुञ्जरित हुई। मृदग पर थाप पढे । वीणा के विलम्बित स्वर लहराने लगे। पास के ही एक का म भोजन परसा जा चुका था । धनदत्त, अग्निमित्र और युवक भासन पर बैठ चुके थे। ब्रह्मचारी को बुलाने के लिए अनुपर आया । ब्रह्मचारी ने भी उन लोगो का साथ दिया। विविध मास, मैरेय मिष्ठाना से परिवेपण सम्पन्न था। अपन माननीय अतिथियों के साथ उस ब्रह्मचारी को भी देखकर धनदत्त बोझ रहा था। पर करता क्या । अभद्रता होती। पान भोजन घलने लगा। उधर वीणा और मृदग का सयोग उस भाजन म और स्वाद बढ़ा रहा था, किन्तु वह कलिंग का युवक राजपुरुष, कभी-कभी जैसे चौंक उठता । फिर सामने दूर उन सुन्दरिया को अर्द्ध अवगुण्ठन म देख लेने का कोई उपाय भी न था। उसे वीणा को कोई-कोई मूर्छना और गमक जैसे असगत सगने पर चोट-सो लग जाती । फिर भी उत्तर भारत का वह शिष्ट आधार अन्वेपण की दृष्टि स देख लेता। जैसे सब सज्जित परिपत पाटिलपुत्र के नागरिका की नपी-तुली परिपाटी ! उसे जैसे चमत्कारजनक दिखलाई पडती। चतुर परिचारक विविध व्यजना को नम्रतापूर्वक परस रह थे। मुगन्ध से सारा गृह भर रहा था। इन्द्रियो का तृप्तिकारक आयोजन सफल हो रहा था। भोजन समाप्त होन पर मणिमाला ताम्बूल लेकर मचलती हुई सामने आई। उसके बग-अग हंस रहे थे। युवक जैसे उसके विनम का क्षण भर के लिए देखने लगा। किन्तु उसका मन तो अवगुण्ठना में अटक रहा था। युवर ने पूछा "प्ठिवर । आपने ये वादक आज के लिए ही बुलवाय हैं क्या ? "हो श्रीमान् ! ' कुछ जैसे अस्वस्य होकर धनदत्त ने कहा । "क्यो. क्या आप इन्हें नहीं पसन्द करते?' धोरे स अग्निमित्र ने पूछा। बसे जैसे युवक की यह बात अच्छी न लगी थी। "हां नही यो ही पूछ लिया। क्या यहाँ उत्तर भारत में वीणा ऐसी ही बज लेती है? "जान पड़ता है कि आप इसके मर्मज्ञ हैं !" अग्निमिन न व्यग से कहा। 'मर्मज्ञ नही जी, मैं बजाता भी हूँ।' सदर्प युवक ने कहा। मसाला बोलने का अवसर खोज रही थी। उसने कहा, और कुछ मचलते इरावती . ५१३