________________
हुए-"तो क्या हम लोगो को भी कलिंग फो योणा सुनने का अवसर आप कृपापूर्वक देगे?" यह एक रमणी का अनुरोध था। युवक ने धनदत्त की ओर देखा। उसे स्वीकार करे या अस्वीकार । ब्रह्मचारी अब जैसे अपने में से बाहर आया। उसने कहा--"अच्छा तो होगा । आनन्द की यह माया, हम लोगों के लिए इस वर्षा की रात्रि मे, परम सुखकारिणी होगी।" धनदत्त सोच रहा था-सब लोग खा-पी चुके, अब अपने स्थान पर जाकर सो रहें । छुट्टी मिले । वीच में यह उपद्रव कैसा । वह मणिमाला पर खीझ रहा था । उसे क्या पडी थी । परन्तु युवक तो सगीत के स्थान की ओर बढने लगा था । अग्निमिन कुतूहल से यह गतिविधि देख रहा था । सहसा एक परिचारक ने सविनय एक छोटा पत्र अग्निमित्र के हाथ मे दिया और कहा-"शिविर से सैनिक आया है।" अग्निमित्र दीपाधार की ओर वढा । उसके उजाले मे मुद्रा तोड कर उसने पत्र पढ़ा--"यवनो की सेना शोण के पार पहुँच गयी है। और तुम अपनी अश्वारोही सेना लेकर रोहिताश्व जाने से बची हुई पदाति सेना शोण के पश्चिम तट पर लेकर पहुंचो । सकेत पाते ही तुम्हारा दक्षिण से आक्रमण होना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो, दूर दक्षिण के पार उतरना होगा । यह स्मरण रखना, एक भी सैनिक और अश्व व्यर्थ न हम खा दे।" उस पर हस्ताक्षर था सेनापति पुष्यमित्र का। ___ अग्निमित्र एक बार जैसे झलमलाया ! उसकी इच्छा हुई कि वह तुरन्त शिविर मे पहुँचे । किन्तु वह अर्घ अवगुण्ठनवतो कौन है ? इसे देखे बिना वह जा कैसे सकता है ! अग्निमित्र ने चारो ओर देखा। अधकार के बीचोबीच यह छोटासा प्रकोष्ठ ! उसे तो अपने अस्तित्व का ज्ञान खो देना था। अभी जो थोडी-सी मदिरा उसने पी ली थी, वही बरसाती घटा की तरह चारों ओर से घेर कर वरसने लगी। उसके लिए जैसे कही पय नही था । कालिन्दी ने प्रतारित किया; इरावती ने उपेक्षा की। पिता पूर्ण विश्वास नहीं करते । डाँट बतलायो । किन्तु उसकी समझ मे नही आता था कि उसकी भूल कहाँ से प्रारम्भ हुई; तो फिर उसे क्या ? भूल पर भूल होती चले । उसको अपनाकर आलिंगन मे ले लेने वाला कोई नही । अवगुण्ठनवती के अवयव जैसे कुछ पहचाने से...होगी वही ! जब समस्त सहानुभूति का अभाव है, तब कल तो रण-नदी मे फांदना ही है । वह भी सगीतशाला की ओर बढा । कुछ-कुछ कलिंग के युवक की ईर्ष्या के साथ । और युवक अपने अरुण नेत्रो मे मुस्करा रहा था। उसने मणिमाला से पूछा-- "आप लोगो को भी सगीत से प्रेम है । मैं ठीक वजाऊँगा या कैसा कुछ, ५१४:प्रसाद वाङ्मय