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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/९०

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- - - - - -- साम्राज्य में वही सम्मान पावेगे, जो मरे वशधरा वो साधारणत 'मिलता है। विजय क हाथ म वह पत्र गिर पड़ा । विस्मय म उसकी आख वडो हा गई। वह मगन सी जार एक्टव निहाग्न लगा। मगल ने कहा-क्या है विजय, पूछत हो क्या है | आज एस वडा भारी आविष्कार हुआ है तुम अभी तक नही समझ मा | जाश्चर्य है। क्या इसस यह निष्वप नहीं निकल सकता कि तुम्हारी नमा म वहीं रक्त है, जा हपवर्धन की धमनिया म प्रवाहित था? यह अच्छी दूर की मूझी । यही मेरे पूर्व-पुम्पी या यह मगल-मूचर यत्र रामझकर बिना जान-समझे ता नही दे दिया गया था? इसम ठहरा, इमरो यदि मै इस प्रकार ममझू, ता क्या बुरा कि यह चन्द्रलया क पशधरा व पास वशानुक्रम से चला आया हो। साम्राज्य के अच्छे दिना म इसकी लावश्यक्ता रही हा और पीछे यह शुभ समझकर उम कुल के सब बच्चा का व्याह हान तक पहनाया जाता रहा हा । तुम्हार यहाँ इसका व्यवहार भी ता इसी प्रकार रहा है। मगल के सिर म विलक्षण भावनाआ की गर्मी म पसीना चमकन नगा। फिर उसन हंसकर कहा-वाह विजय | तुम भी बड़े भारी परिहास-रसिप' हो । क्षण भर म सारी गम्भीरता चली गई, दाना हैंसन लग । ६० प्रसाद वाडमम