पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/९१

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रजना के वाला स विखरे हुए माती वटारने के लिए प्राची के प्रागण म उपा आई और इधर यमुना उपवन म फूल सुनन के लिए पहची । प्रभात की फीकी चांदनी म बचे हुए एक दो नक्षन अपने को दक्षिण-पवन के पाका म विलीन कर देना चाहते हैं । कुन्द क फूल थाल ये श्यामन अचल पर क्मीदा बनाने लग थे। गगा क मुक्त वक्षस्थल पर स घूमती हुई मन्दिरो क खुनन की घण्टा की प्रति ध्वनि प्रभात की शान्त निस्तब्धता म एक सगीत की झनकार उत्पन कर रही थी । अन्धकार आर जालोक की सीमा बनी हुई युवती के रूप वो अस्त होनेवाला पीला चद्रमा और लाली फरनवानी उपा अभी स्पष्ट न दिखला सकी थी कि वह अपनी डानी फूला से भर चुकी और उस कडी सरदी में भी यमुना मालती कज की पत्थर की चौकी पर बैठी हुई दूर म आत हुए शहनाई के मधुर स्वर म अपनी हृदयतनी मिला रही थी। ममार एक अगडाई नेवर आख खोर रहा था । उसब जागरण म मुसकान थो । नीड म मे निकलत हुए पशियो क रव को वह नाश्चय से सुन रही थी। वह ममय न मकती थी कि उह क्या उल्लास है । ससार में प्रवृत्त होन की इतनी प्रमनता क्या ? दादा दान वीन कर न जान और जीवन का लम्बा करन लिए इतनी उकठा । इतना उसाह | जीवन इतने मुख की वस्तु है ? टप टप टप टप |-यमुना चक्ति हाकर खडी हो गई । खिलखिलाकर हमने का शब्द हआ । यमुना न देखा--विजय खडा है । उसन कहा---यमुना तुमन तो ममझा होगा कि यह विना वादनो की बरसात कैसी ? जाप ही थे-मानती तास ओस की बद गिराकर वरसात का अभिनय करने वाने । यह न जानकर मैं तो चाक उठी थी। हा यमुना 1 आज तो हम नोगा का रामनगर चनन का निश्चय है । तुमन मामान तो सब बाध लिय होग-चलोगी न ? ककाल