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पूजा समाप्त हो चुकी थी। सवको चलने के लिए कहा गया। यमुना ने बेग उठाया। सब उतरने लगे । धूप कडी हो गई थी, विजय ने अपना छाता खोल लिया । उसको वार-बार इच्छा होती कि वह यमुना से इसो को छाया में चलन के लिए कहे, पर साहस न होता । यमुना की दो-एक लटे पसीन स उसके सुन्दर भाल पर चिपक गइ थी। विजय उसी विचित्र लिपि का पढत-पढते पहाडी स नीच उतरा। सब लोग काशी लौट आय । ककाल ६६