पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/९८

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विजय को रुखाई जान पडी, उसने भी बात बदल दी। कहा-तुमने तो कहा था कि तुमको जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, मैं दूंगी, यहां मुझे कुछ आवश्यकता है। ____यमुना भयभीत होकर विजय के आतुर मुख का अध्ययन करने लगी। कुछ न बोली । विजय ने सहम कर कहा-मुझे प्यास लगी है। यमुना ने वैग म से एक छोटी-सी चांदी की लुटिया निकाली, जिसके साथ पतली रगीन डोरी लगी थी। यह कुरैया की झुरमुट की दूसरी ओर चली गई। विजय चुपचाप साचन लगा, और कुछ नही, केवल यमुना क स्वच्छ कपोला पर गुलेनार रग की छाप । उन्मत्त हृदय-किशोर हृदय, स्वप्न देखने लगा--ताम्बूल राग-रञ्जित, चुम्बन-अकित कपोलो का | वह पागल हो उठा। यमुना पानी लेकर आई, वेग से मिठाई निकालकर विजय के सामने रख दी । सीधे लडके की तरह विजय ने जलपान किया तव पूछा-पहाडी के ऊपर ही तुम्हे जल कहाँ मिला यमुना ? यही तो, पास ही एक कुण्ड है । चलो मुझे दिखला दो। दोनो कुरैये के झुरमुट की ओट म चले। वहाँ सचमुच एक चौकोर पत्थर का कुण्ड था, उसमें जल लवालव भरा था। यमुना ने कहा--मुझसे यही एक टडे ने कहा है कि यह कुण्ड जाडा, गरमी, वरसात, सव दिनो मे वराबर भरा रहता है, जितने आदमी चाहे इमम जल पिय, खाली नहीं होता। यह देवी का चमत्कार है। इसी से विन्ध्यवासिनी देवी से कम इस पहाडी झीला की देवी का मान नही है । बहुत दूर से लाग यहाँ आते हैं । यमुना, हे बडे आश्चर्य की बात । पहाडी के इतने ऊपर भी यह जलकुण्ड सचमुच अद्भुत है, परन्तु मैंन और भी ऐसा कुण्ड देखा है--जिसमे कितने ही जल पिएँ, वह भरा ही रहता है। सचमुच । कहाँ पर विजय बाबू? सुन्दरी मे रूप का कूप-कहकर विजय यमुना के मुख को उसी भाँति । देखने लगा, जैसे अनजान म ढेला फेंककर बालक चोट लगनेवाले को देखता है। वाह विजय वावू । आज-कल साहित्य का ज्ञान बढा हुआ देखती हूँ--11 कहते हुए यमुना ने विजय को ओर देखा-जैसे कोई बडी-बूढी, नटखट लडके को सकेत से झिडकती हो। विजय लज्जित हो उठा । इतने मे "विजय बाबू' की पुकार हुई--किशोरी बुला रही थी। वे दोना दवी के सामने पहुंचे। किशोरी मन-ही-मन मुस्कराई । ६८ प्रसाद वाङ्मय