पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महापिंगल-दुहाई है। मेरे बाल नहीं । ये काले हैं, हा-हाँ चूना लग गया है। शास्त्र की आज्ञा से अभी मैं ब्याह, प्रेम या और इसी तरह का सब गड़बड़ कर सकता हूँ। दुहाई है । मेरे बाल काले हैं। तरला-चूना लगा है तुम्हारे मुंह में । [महापिंगल मुंह पोछने लगता है। तरला हंसती है और बाल खींचती है] महापिंगल-देखो यह हँसी अच्छी नही लगती । छोड़ दो। तरला-प्रेम करोगे? सहज में ? महापिंगल-अरे, तुम बड़ी मूर्खा हो। वह सब एक स्वांग था। भला राजा- का-सा रूप न धरें तो मिले क्या। अभी तक तुम्हारा चन्द्रहार नहीं बन सका, जब राजा को अपने ढंग का बनाऊँ तब तो काम हो। तरला हाँ, सच तो। मेरा चन्द्रहार लाओ। महापिंगल--देखो कैसी पिघल गई। गर्म कढ़ाई में घी हो गई। गहने का जब नाम सुना, वस' पानी-पानी। तरला-बातें न बनाओ। लाओ मेरा हार । महापिंगल-अभी तार लगे तब न हार मिले । तुम तो बीच में ही विल्ली की तरह रास्ता काटने लगी। तरला-तब ? अब की ला दोगे। महापिंगल-अच्छा । पर कान में एक बात तो सुन जाओ। तरला-जाओ, जाओ, मैं नही सुनती। महापिंगल-तब फिर। तरला-अच्छा। अच्छा। [दोनों हाथ मिलाकर गाते हैं] लगा दो गहने का बाजार । कुछ है चिन्ता नही और क्या मिले नही आहार नाक छेद लो, कान छेद लो, किसको अस्वीकार। सोना-चांदी उसमे डालो, तब हो पूरा प्यार ॥ [दौवारिक का प्रवेश] दौवारिक-शीघ्र चलिये, महाराज ने बुलाया है । महापिंगल-अरे हम नही-(भागता है। उसके पीछे दौवारिक जाता है) दृश्यान्तर विवा: १८५