पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२२

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सारस करत अकाम पवन नटी-(हँसकर)-आज तो बड़ी सज्जनता सूझी है। अच्छा तो "सज्जन" नामक प्रबन्ध क्यों न दिखाया जाय ? प्रबन्ध भी छोटा और मनोरम है। सूत्रधार-'अच्छा सोचा । पर प्रिये ! कुछ अपने मधुर कण्ठ से गाकर सनाओ, क्योंकि-- पशुहूँ मोहत जाहि सुनि, उपजावत अनुराग । चित्त प्रफुल्लित करन हित, और कौन जम राग ।। और ऋतु भी शरद का कैसा मनोहर है ! भयो विमल जल लोल नलिनि की अवली फूली। कलोल मयूरी वोलन भूली' । निर्मल नील कास फूल कूलन में। शीतल मंद सुवास खेल फूलन [नेपथ्य में से मृदंग का शब्द सुनाई पड़ता है] नटो-अब तो महाराज दुर्योधन के सभा ही मे गाना आरम्भ हुआ है । सूत्रधार-क्या अभिनय आरम्भ हुआ? तो चलो जल्दी चले । (दोनों जाते हैं) प्रथम दृश्य [द्वैत सरोवर का निकटवर्ती कानन] [पट-मंडप में दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण, शकुनी प्रभृति बैठे हैं और उनकी स्त्रियाँ भी पार्श्व में बैठी हैं। नृत्य हो रहा है] गाने वाली गाती है सदा जुग जुग जीओ महाराज। सुखी रहो सब भाँति अनन्दित, भोगो सब सुख साज । नित नव उत्मव होय मगन मन, विनवै राज समाज ॥ कर्ण -वाह ! वाह ! क्या अच्छा गाया ! [दुर्योधन अंगूठी देता है] २. सूत्रधार-वाह प्रिये वाह ! अच्छा विचारा । वही न जो श्री जयशंकर प्रसाद ने अभी नया-नया बना कर हम लोगो को खेलने को दिया है। नटी-हाँ हाँ वही मज्जनताकुमुमदाम के प्रधान कुसुम, श्रीधर्मावतार युधिष्ठिर की मज्जनता और उन्ही के अनुगत अनुज विजयी विजय के वीरता से भरा हुआ मनोहर अभिनय। ३. मूली ५. साजा ६. तोंहि सब राजा ४. महराजा ६: प्रणाम