पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३०२

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पद्मावती-तो फिर मुझे पुरस्कार दीजिये। बिम्बसार-क्या लोगी? पद्मावती--पहिले छोटी मां को, भइया को क्षमा कर दीजिये; क्योंकि इनकी याचना पहले की है। फिर." बिम्बसार-अच्छा री पद्मा | देखूगा तेरी दुष्टता। उठो वत्स अजात ! जो पिता है वह क्या कभी भी पुत्र को क्षमा-केवल क्षमा-मांगने पर भी नही देगा। तुम्हारे लिये यह कोष सदैव खुला है । उठो छलना, तुम भी। (अजातशत्रु को गले लगाता है)। पद्मावती-तब मेरी बारी! बिम्बसार--हां कह भी पद्मावती-बस चल कर मगध के नवीन राजकुमार की एक स्नेह-चुम्बन आशीर्वाद के साथ दीजिये। बिम्बसार-तो फिर शीघ्र चतो--(उठ कर गिर पड़ता है) ओह ! इतना सुख एक साथ मैं सहन न कर सकूँगा ! तुम सब बहुत विलम्ब करके आये ! (कांपता है) [गौतम का प्रवेश, अभय का हाथ उठाते हैं] [आलोक सहित यवनिका-पतन] २८२ :प्रसाद वाङ्मय