पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३७४

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पृथ्वी पर मनुष्य के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में वैज्ञानिक अन्वेषणों के प्रयास जारी है। ऐसी अनुसन्धान प्रक्रिया की एक उपलब्धि यह भी सम्मुख आई है कि आकाश के किसी ज्योतिष्क और संभवतया शुक्र से जीव-नीहार की हुई वृष्टि से पृथ्वी पर प्राणि-समुदाय उद्भूत हुआ है। सुतरां कामना की 'तारा सन्तान'- कल्पना कुछ वायवीय नही। भावों के प्रतीकांकन और मानवीकरण का आदिस्रोत श्रुतियों में निहित है। इस सन्दर्भ मे कामना एक ऐमा सेतुपथ है जिसके दूसरी छोर पर कामायनी है। कामना मे भाव ने कार्य शरीर पाया और कामायनी मे कारण शरीर । परवर्ती संस्कृत साहित्य में भी इस विधा की दो महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं -बारहवी शती का कृष्णमिश्र कृत प्रबोधचन्द्रोदय और सोलहवी शती का वेदान्तदेशिकाचार्य द्वारा रचित संकल्पसूर्योदयः किन्तु, प्रबोधचन्द्रोदय पर शाकर अद्वैत की छाप है और मंकल्पसूर्योदय रामानुजीय परम्परा की वस्तु है। अतः, उनमे निरपेक्ष साहित्यिक- न्याय अन्वेष्य है। द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर कृत उन्नीसवी शती का स्वप्नप्रयाण भी उल्लेख्य है। यह विधा मानवी चेतना के विकास की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसलिए केवल भारत की ही नही प्रत्युत पश्चिम की कृतिया भी उल्लेग्य हे। बारहवी शती मे ही शेख फरीदुद्दीन अत्तार ने मंतिकुत्तयार लिखा और सोलहवी शती का बनियन कृत पिल्ग्रिम्म प्रोग्रेस है । पृथ्वी पर मानवोत्पत्ति और विकास के लिए अवलोक्य है- -Secret Doctrine, Book of Dzyan, History of Creation, Story of Lemnria and Lost Atlantis, Native Races, Man's Place in Univcise इत्यादि। -सम्पादक