पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९०

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पंचम दृश्य [उपासना-गृह में-सामने धूनी में जलती हुई अग्नि, बीच में कामना स्वर्णपट्ट बाँधे, दोनों ओर द्वीप के नागरिक, सबसे पीछे विलास] कामना-पिता ! हम सब तेरी सन्तान हैं (सब वही कहते हैं) कामना-हमारी परस्पर की भिन्नता के अवकाश को तू पूर्ण बनाये रख, जिसमें हम सब एक हो रहें। सब-हम सब एक हो रहें। कामना-हमारे ज्ञान को इतना विस्तार न दे कि हम सब दूर-दूर हो जायं । हम सब समीप रहें। सब - हम सब समीप रहें। कामना हमारे विचारों को इतना संकुचित न कर दे कि हम अपने ही मे सब कुछ समझ ले । सब में तेरी सत्ता का अनुभव हो । सब-सब में तेरी सत्ता का अनुभव हो (घुटने टेकते हैं) कामना (उठकर) हम लोगों मे आज एक नवीन मनुष्य है । वह आप लोगों को पिता का एक सन्देश सुनायेगा ! एक वृद्ध-पवित्र पक्षियों के सन्देश क्या अब बन्द होगे ! दूसरा -क्या मनुष्य से हम लोग सन्देश सुनेंगे ! तीसरा-कभी ऐसा नहीं हुआ। विलास-शान्त होकर सुनिये । पवित्र उपासना-गृह मे मन को एकाग्र करके, विनम्र होकर, सन्देश सुनिये । विरोध न कीजिये । पहला वृद्ध-इस उपद्रव का अर्थ ? विदेशी युवक, तुम यहाँ क्या किया चाहते हो ? विरोध क्या? विनोद-सुनने मे बुराई क्या है ? लीला-हमारे ब्याह की उपासना यों उपद्रव में न समाप्त होनी चाहिये। आप लोग सुनते क्यों नही? कामना- मैं आज्ञा देती हूँ कि अभी उपासना पूर्ण नही, इसलिये सब लोग सन्देश को सावधान होकर सुनें । दो-चार वृद्ध- इस उन्मत्त कथा का कही अन्त होगा? कामना ! आज तुम्हें क्या हुआ है ? तुम केवल उपासना का नेतृत्व कर रही हो, आज्ञा कैसी? वह क्यों मानी जाय ? कई स्त्री पुरुष-हम लोगों को यहां से चलना चाहिये और कोई दूसरा व्यक्ति कल से उपासना का नेता होगा। ३७० :प्रसाद वाङ्मय