पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९५

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विलास-पही कि मेरे घर पधारे हैं। एक युवती हम लोग तो इसे अपना ही घर समझते हैं । विनोद -वास्तव मे तो घर विलास जी का है। विलास-ऐसा कहना तो शिष्टाचार-मात्र हैं। अच्छे लोग तो ऐसा कहते ही है। युवक -क्या इस घर के आप ही सब कुछ है ? हम लोग कुछ नही ? काममा-आप लोग जब आ गये है, तब तक आप लोग भी है, परन्तु विलास जी की आज्ञानुसार। विलास-(हंसकर) हमारे देश मे इसको शिष्टाचार कहते हैं । यद्यपि आप लोगो का इस समय हमारे घर पर पूर्ण अधिकार है, परन्तु स्वस्व हमारा ही है। क्योकि जब आप लोग यहां से चले जायंगे, तब तो मै ही इसका उपभोग करूंगा। लीला-कैसी सुन्दर बात है, कैसा ऊंचा विचार है ! [सब आश्चर्य से एक-दूसरे का मुंह देखते हैं] विलास--आप लोग कुछ थके होगे, इसलिये थोड़ी-थोड़ी पेया पी लीजिये तब खेल होगः । देखिये, आप लोगों को आज एक नया खेल खेलाया जायगा। जो मैं कहूँ, वही करते चलिये। युवक--ऐसा? विलास हां, आप लोग गाते हुए धूमते और नाचते भी तो है ? युवक) क्यो नही, परन्तु उसका समय दूसरा होता है। युवती विलास [-आज हम जैसा कहे, वैसा करना होगा। कामना-अच्छी बात है। नया खेल देखा जायगा। [कामना और लीला मदिरा ले आती है, विलास सबको पंक्ति से बैठाता और कामना को संकेत करता है, दोनों सबको मद्य पिलाती हैं, सब प्रसन्न होते हैं]] एक--(नशे में) अब खेल होना चाहिये । सब--(मद-विह्वल होकर) हाँ, हाँ, होना चाहिये । विलास-(एक से पूछता है) क्यों, तुमको कौन स्त्री अच्छी लगती है ? देखो उसके मुख पर कैमा प्रकाश है । (एक दूसरे की स्त्री को दिखाता है) वह युवक-हां इसमे तो कुछ विचित्र विशेषता है। विलास-अच्छा तो इनमे से सब लोग इसी प्रकार एक-एक स्त्री को चुन लो। [नशे में एक दूसरे की स्त्री अच्छी समझते हुए उनका हाथ पकड़ते हैं, विलास सबको मण्डलाकार खड़ा करता है] कामना : ३७५