पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/३९७

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द्वितीय अंक ? प्रथम दृश्य [जंगल में विलास, कामना, विनोद और लीला] लीला-बहुत दूर चले आये। अब हम लोगों को लौटना चाहिये । विलास-हॉ, इधर तो द्वीप के निवासी बहुत ही कम आते हैं । विनोद हम समझते है, अब इस द्वीप के मनुष्यो को और भूमि की आवश्यकता न होगी। कामना-आवश्यकता तो होगी ही। विलास- फिर इतना दुर्गम कान्तार अनाक्रान्त क्यों छोड दिया जाय ? सम्भव है, कालान्तर मे इधर ही बसना पडे। बिनोद-तब इधर- विलास-तुम्हारे पास तीर और धनुष क्यो है ? विनोद आने वाले भय से रक्षा के लिये । विलास-परन्तु, यदि तुम्ही उनके लिए भय के कारण बन जाओ, तब ? विनोद-कैसे? विलास-मूर्ख, दुर्दान्त पशु जब तुम्हारे ऊपर आक्रमण करते है, तब तुम अपने को बचाते हो । यदि तुम उन पर आक्रमण करने लगी, तो वे स्वयं भागेंगे। [चार युवक तीर और धनुष लिये आते हैं] विलास-ये लोग भी आ गये । कामना हाँ, अब तो हम लोगो का एक अच्छा दल हुआ। आगंतुक -कहिये, आज यहाँ कौन-सा नया खेल है ? विलास-जो तुमको हानि पहुंचाने के लिये सदैव तत्पर है, उन्हे यदि तुम भयभीत कर सको, तो वे स्वयं कभी साहस न करेगे, और साथ ही एक खेल भी होगा। आगंतुक -बात तो अच्छी है। विलास-अच्छा, सब लोग भयानक चीत्कार करो, जिससे पशु निकलेंगे, और तब तुम लोग उन पर तीर चलाना। सब-(आश्चर्य से) ऐसा ! विलास-हाँ। [सब चिल्लाते हैं और ताली पीटते है, पशुओं का साड़ियों के भीतर दौड़ना, तीर लगना और छटपटाना] कामना : ३७७