पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/४८६

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. बंधुवर्मा-(सिर झुका कर सोचते हुए) तुम कृतघ्नता का समर्थन करोगी- वैभव और ऐश्वर्य के लिए ऐसा कदर्य प्रस्ताव करोगी""इसका मुझे स्वप्न में भी ध्यान न था। जयमाला-यदि होता? बंधुवर्मा -तब मैं इस कुटुंब की कमनीय कल्पना को दूर से ही नमस्कार करता और आजीवन अविवाहित रहता। क्षत्रिये ! जो केवल खड्ग का अवलंब रखने वाले सनिक हैं, उन्हें विलास की सामग्रियों का लोभ नही रहता। सिंहासन पर मुलायम गद्दों पर लेटने के लिए या अकर्मण्यता और शरीर-पोषण के लिए क्षत्रियो ने लोहे को अपना आभूषण नहीं बनाया है। भीमवर्मा-भैया-तब ? बंधुवर्मा-भीम ! क्षत्रियों का कर्तव्य है-आर्त-त्राण-परायण होना, विपद् का हैसते हुए आलिंगन करना, विभीषिकाओं की मुसक्याकर अवहेलना करना, और- और विपन्नों के लिए-अपने धर्म के लिए देश के लिए, प्राण देना ! देवसेना-(सहसा प्रवेश करके) भाभी ! सर्वात्मा के स्वर मे, आत्म-समर्पण के प्रत्येक ताल मे अपने विशिष्ट व्यक्तिवाद का विस्मृत हो जाना-एक मनोहर मंगीत है ! क्षुद्र स्वार्थ-भाभी जाने दो, भैया को देखो-कैसा उदार, कैसा महान् और कितना पवित्र ! जयमाला-देवसेना ! समष्टि में भी व्यष्टि रहता है। व्यक्तियो से ही जाति बनती हैं। विश्व-प्रेम, सर्वभूत-हित-कामना परम धर्म है, परंतु इसका अर्थ यह नही हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो। इस अपने ने क्या अन्याय किया है जो इसका बहिष्कार हो ! बंधुवर्मा-ठहरो जयमाला ! इसी क्षुद्र मसत्व ने हमको दुष्ट भावना की ओर प्रेरित क्यिा है इसी से हम स्वार्थ का समर्थन करते है। इसे छोड दो जयमाला । इसके वशीभूत होकर हम अत्यंत पवित्र वस्तुओ से बहुत दूर हो जाते है। बलिदान करने के योग्य वह नही-जिसने अपना आपा नही खोया । भीमवर्मा-भाभी | अब तर्क न करो। समस्त देश के कल्याण के लिए एक कुटुंब की भी नही, उसके क्षुद्र स्वार्थो की बलि होने दो भाभी । हृदय नाच उठा है, जाने दो इस नीच प्रस्ताव को । देखो-हमारा आर्यावर्त विपन्न है, यदि हम मर-मिट कर भी इमकी कुछ सेवा कर सकें. जयमाला -जब सभी लोगों की ऐसी इच्छा है, तब मुझे क्या । बंधुवर्मा-तब मालवेश्वरी की जय हो, तुम्ही इस सिंहासन पर बैठो। बंधुवर्मा तो आज से आर्य-साम्राज्य-सेना का एक साधारण पदातिक सैनिक है। तुम्हे तुम्हारा ऐश्वर्य सुम्वद हो। (चलने को उद्यत होता है) 1 ४६६ : प्रसाद वाङ्मय