पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/५३२

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प्राण, अन्य नागरिक-अरे गाने भी दे बूढ । पर्णदत्त-हाय रे अभागे देश । [देवसेना गाती है] देश की दुर्दशा निहारोगे, डूबते को कभी उबारोगे ? हारते ही रहे, न है कुछ अब, दाँव पर आपको न हारोगे? कुछ करोगे कि बस सदा रोकर, दीन हो देव को पुकारोगे। सो रहे तुम, न भाग्य सोता है, आप बिगड़ी तुम्हीं संवारोगे। दोन जीवन बिता रहे अब तक, क्या हुए जा रहे, विचारोगे? पर्णदत्त-नही बेटी निर्लज्ज कभी विचार नही करेगे । चक्र० और भीम०--आर्य पर्णदत्त की जय । पर्णदत्त-मुझे जय नही चाहिये-भीख चाहिये। जो दे सकता हो अपने जो जन्म-भूमि के लिए उत्मगं कर सकता हो जीवन, वैसे वीर चाहिए, कोई देगा भीख मे? स्कन्दगुप्त--(भीड से निकलकर) में प्रस्तुत हू तात । भटार्क--श्री स्कदगुप्त विक्रमादित्य की जय हो । [नागरिकों में से बहुत-से युवक निकल पड़ते हैं] सब-हम है, हम आपकी सेवा के लिए प्रस्तुत है । स्कन्दगुप्त--आर्य पर्णदत्त । पर्णदत्त--आओ वत्म-सम्राट् । (आलिंगन करता है) [उत्साह से जनता पूजा के फूल बरसाती है/चक्रपालित, भीमवर्मा, मातृगुप्त, शर्वनाग, कमला रामा, सब का प्रकट होना तूमुल जयनाव के साथ दृश्यांतर] चतुर्थ दृश्य [महाबोधि विहार में अनंतदेवी, पुरगुप्त, प्रख्यातकीति, हूण-सेनापति] अनंतदेवी--इसका उत्तर महाश्रमण देगे । हूण-सेनापति-मुझे उत्तर चाहिये-चाहे कोई दे। प्रख्यातकीत्ति-सेनापति | मुझ से सुनो, समस्त उत्तरापथ का बौद्ध-संघ-जो तुम्हारे उत्कोच के प्रलोभन मे भूल गया था--वह अब न होगा। हूण-सेनापति-तभी बौद्ध जनता से जो सहायता हूण-सैनिको को मिलती थी, बंद हो गई और उल्टा तिरस्कार । प्रख्यातकात्ति-वह भ्रम था। बौद्धों को विश्वास था कि हण लोग सवर्म ५१२ प्रसाद वाङ्मय