पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६०१

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पर्वतेश्वर -बन्दी कैसे? अलका-बन्दी नहीं तो और क्या ? सिंहरण, जो आपके साथ युद्ध करते घायल हुआ है, आज तक वह क्यों रोका गया ? पंचनद-नरेश आपका न्याय अत्यन्त सुन्दर है न ! पर्वतेश्वर-कौन कहता है सिंहरण बन्दी हैं ? उस वीर की मैं प्रतिष्ठा करता हूँ अलका, परन्तु उससे द्वन्द्व युद्ध करना चाहता हूँ। अलका-क्यों ? पर्वतेश्वर-क्योंकि अलका के दो प्रेमी नहीं हो सकते । अलका-महाराज, यदि भूपालों का-सा व्यवहार न मांगकर आप सिकन्दर से द्वन्द-युद्ध मांगते, तो अलका को विचार करने का अवसर मिलता। पर्वतेश्वर--यदि मैं सिकन्दर का विपक्षी बन जाऊँ-तो तुम मुझे प्यार करोगी अलका ? सच कहो। अलका-तब विचार करूंगी, पर वैसी सम्भावना नही। पर्वतेश्वर-क्या प्रमाण चाहती हो अलका ? आउका-सिंहरण के देश पर यवनों का आक्रमण होनेवाला है, वहाँ तुम्हारी सेना यवनों की सहायक न बने और सिंहरण अपने मालव की रक्षा के लिए मुक्त किया जाय। पर्वतेश्वर-मुझे स्वीकार है । अलका-तो मैं भी राजभवन में चलने के लिए प्रस्तुत हूं, परन्तु एक नियम पर! पर्वतेश्वर-वह क्या? अलका-यही कि सिकन्दर के भारत में रहने तक मैं स्वतन्त्र रहूंगी। पंचनद नरेश, यह दस्यु-दल बरसाती बाढ़ के समान निकल जायगा विश्वास रखिये। पर्वतेश्वर -सच कहती हो अलका ! अच्छा, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ, तुम जैसा कहोगी, वैसा ही होगा। सिंहरण के लिए रथ आयेगा और तुम्हारे लिए शिविका । देखो भूलना मत । [चितित भाव से प्रस्थान] षष्ठ दृश्य [मालवों के स्कन्धवार में युद्ध-परिषद] देवबल-परिषद् के सम्मुख मैं यह विज्ञप्ति उपस्थित करता हूँ कि यवन-युद्ध के लिए जो संधि मालव-क्षुद्रकों में हुई है, उसे सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि चन्द्रगुप्त : ५८१